Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 108
________________ स्ववचनविरूद्ध-"न वाचो वस्तुविषया" इस कथन के ही उक्त वचन का विरोधी होने से ।अवस्तुविषयक होने पर वचन के व्यर्थ होने के कारण निग्रहस्थानत्व (दंडविज्ञान) की अपित्ति होने से।।118 ।। लोकविरुद्धं यथा-मिथ्यैव सर्वे प्रत्यया इति लोकस्य बहुलं जाग्रत्प्रत्ययेष्वमिथ्यात्वे एव विषयभावलक्षणेऽभिनिवेशात्। वासनादाढादेवायं न वास्तवादमिथ्यात्वादिति चेत् न, तद्दाय॑स्याप्येवं तत्प्रतीतिसम्यक्ता - भिनिवेशोपनीतत्वेनावस्तुत्वापत्तौ व्योमकुसुमादिवत्ततस्तेषु तत्कल्पनानुपपत्तेस्ततो विषयभावादेव तत्प्रतीतिवदन्यत्राऽपि तदभिनिवेश इति कथं न सर्वप्रत्ययमिथ्यात्वं लोकविरुद्धं । 119 ।। लोकविरूद्ध जैसे-“मिथ्यैव सर्वे प्रत्ययाः" लोक की अधिकतर जाग्रत प्रत्ययों में, विषयभाव लक्षण सम्यक्त्व में ही अनुरक्ति होने से उक्त कथन लोकविरूद्ध है।यदि यह कहो कि वासना की दृढ़ता से ही वह प्रतीति सम्यक्त्व है, वास्तविक अमिथ्यात्व होने से नहीं तो उस वासना की दृढ़ता को भी इस प्रकार उसकी प्रतीति सम्यक्त्व में रूचि होने के कारण होने से आकाश कुसुम के समान अवस्तुत्व की आपत्ति आयेगी।अतः जाग्रत प्रत्ययों में मिथ्या की कल्पना नहीं होने से ही उसकी प्रतीति के समान सम्यक्त्व में भी उसके होने से ही रूचि होती है।अतः सर्वप्रत्यय मिथ्यात्व लोक विरूद्ध कैसे नहीं है। 119 ।। हेतुसाध्ययोरिव दृष्टांतस्याप्याभासो निरूपयितव्यः, अन्यथातद्विलक्षणतया तस्य निरूपणानुपपत्तेरिति चेत् न, दृष्टांतस्यैव तदभावेऽप्यनुमानस्य बहुलमुपलभेन तं प्रत्यनंगत्वात्, तमम्युपगम्य तु ब्रूमः |साध्यसाधनधर्मयोः संबंधो यत्र निर्ज्ञातः स दृष्टांतः स च द्वेधा, साधर्म्यण वैधर्येण च ।तत्र शब्दस्य कृतकत्वादेरनित्यत्वे साधर्म्यण घट: वैधयेणाकाशं तत्र तयोरन्वयमुखेन व्यतिरेकद्वारेण च संबंधपरिज्ञानात्।।12011 हेतु और साध्य के समान दृष्टान्त का आभास भी बताना चाहिये अन्यथा दृष्टान्ताभास से विलक्षण रूप से दृष्टान्त का निरूपण नहीं हो सकता, यह कहना ठीक नहीं है।दृष्टान्त के अभाव में भी अधिकांश अनुमान के होने से दृष्टान्त को अनुमान के प्रति व्यर्थ होने से अनुमान के प्रति कारण मानकर कहते हैं-साध्य और साधन के धर्म का संबंध जहां ज्ञात हो वह दृष्टान्त है। वह दो प्रकार का है-साधर्म्य से और वैधर्म्य से।साधर्म्य से-यथा शब्दोऽनित्यः कृतकत्वात् घटवत् यहां घट साधर्म्य से दृष्टान्त है।वैधर्म्य से-यथा आकाश ।घड़े और आकाश में साध्य और साधन का संबंध अन्वय और व्यतिरेक के द्वारा जाना जाने से।।120 ।। 'प्रकृत इति शेषः। ' तत्प्रतीतिसम्यक्ताभिनेवेशः। प्रयोग। 'घटाकाशयोः। साध्यसाधनयोः। 85

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