Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 110
________________ बुद्धात्संसारित्वादिव्यावृत्तेः प्रमाणाभावेनानवधारणात्। नित्यः शब्दोऽमूर्त्तत्वात् यन्न नित्यं न तदमूर्त यथा घट इत्यव्यतिरेक, घटे सतोऽपि साध्यव्यतिरेकस्य हेतुनिर्वर्त्तनं प्रत्यप्रयोजकत्वाददन्यथा कर्मण्यपि तस्य तत्वोपपत्तेः ।अनित्यः शब्दः शब्दत्वात् वैधायेंणाकाशवदित्यप्रदर्शितव्यतिरेकं ।तत्रैव यन्न सन्न तदनित्यमपि यथा नभ इति व्यतिरेकं साध्यनिवृत्त्या साधन निवृत्तेरनुपदर्शनात्। त इमे नव पूर्वे चाष्टादश दृष्टांताभासाः प्रतिपत्तव्या।।122|| इसी प्रकार वैधर्म्य से भी-जैसे "नित्यः शब्दोऽमूर्तत्वात् यन्न नित्यं न तदमूर्त परमाणुवत्" यह दृष्टान्त साध्याव्यावृत्त है, परमाणु के नित्य होने से ।कर्मवत् यह साधनाव्यावृत्त है कर्म के अमूर्त होने से आकाशवत् यह उभयाव्यावृत्त है, नित्यत्व और अमूर्तत्व दोनों के वहां होने से।"सुगतः सर्वज्ञः अनुपदेशलिंगानन्वयव्यतिरेक - प्रमाणोपपन्नतत्ववचनत्वात्” (उपदेश लिंग तथा अन्वय और व्यतिरेक के बिना ही प्रमाणसम्मत तत्व को कहने से।) यस्तु न सर्वज्ञो नासौ तद्वचनो यथा वीथीपुरूषः यह संदिग्ध साध्य व्यतिरेक है, वीथीपुरूष में सर्वज्ञता के अभाव का ज्ञान कठिनता से होने के कारण।“अनित्यः शब्दः सत्वात्" यन्न तथा न तत्सत् यथा गगनम्" यह संदिग्ध साधन व्यतिरेक है, गगन के सत्व को अदृश्य होने के कारण अनुपलंभ होने से अभाव की सिद्धि नहीं होने से। संसारी हरिहरादिरविद्यादि मत्वात् यस्तु नैव नासौ तथा यथा बुद्ध यह संदिग्धोभय व्यतिरेक है, बुद्ध के संसारित्व के अभाव को सिद्ध करने वाले किसी प्रमाण के न होने से निश्चत नहीं होने से नित्यः शब्दोऽमूर्तत्वात् यन्न नित्यं नतदमूर्तयथा घट यह अव्यतिरेक है, घड़े में साध्य के विपरीत अनित्यत्व के होने पर भी अमूर्तत्वात् हेतु साध्य के प्रति अप्रयोजक होने से अन्यथा कर्म में भी अमूर्तत्व हेतु को साध्य के प्रति प्रयोजकत्व होने का प्रसंग होने से।"अनित्यः शब्दः शब्दत्वात्" वैधर्म्य से आकाश के समान, यह अप्रदर्शित व्यतिरेक है।यन्न सन्न तदनित्यमपि यथा नभ यह व्यतिरेक है, साध्य के बिना साधन के अभाव का प्रदर्शन नहीं होने से।ये नव तथा पहले बताये गये नव इस प्रकार अठारह दृष्टान्ताभास जानना चाहिये ।।122 ।। कुतः पुनदृष्टांत तदाभासयोः साधनदूषणभावस्याभावेऽभ्युपगमेनापि निरूपण मिति चेत् न, तत्ववाद एव तयोस्तदभावात् ।'प्रतिवादादौ तु स विद्यत एव तद्वादस्यापि चिरंतनैरभ्यनुज्ञानादित्युपपन्नमेव तन्निरूपणं फलवत्वादिति ।[123| साधन दूषणभाव के अभाव में अनुमान के स्वीकार करने पर भी दृष्टान्त और दृष्टान्ताभास का निरूपण क्यों किया, यह कहना ठीक नहीं है।वीतराग कथा में ही दृष्टान्त आर दृष्टान्नाभास के साधन दूषण प्रयोग का अभाव होने से, प्रतिवाद आदि विजिगीषुकथा में तो साधन दूषण प्रयोग होता ही है और वह वाद प्राचीन विद्वानों के द्वारा स्वीकृत है अत. फलप्रद हाने से उनका निरूपण ठीक ही है।1123 ।। विजिगीषुकथायां। 87

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