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धर्मिविशेषसाधनमपि द्वेधा, धर्मिणोऽनर्थान्तरमर्थान्तरं चेति । अनर्थान्तरमपि द्विविधं, सपक्षेण विकलमविकलं चेति । तत्राद्यं सर्वमनेकान्तात्मकं सत्वादिति । सत्वं खलु सामर्थ्येन व्याप्तमसमर्थाद्' व्योमकुसुमादेस्तस्य व्यावृत्तेः । सामर्थ्यस्य चैकत्वे न ततः प्रदीपादि संबंधिनः कज्जलमोचनतैलशोषादिकार्यम्, अनेकत्वे च कथं न 'भावस्यानेकांतात्मत्वं । भावतस्तस्य व्यक्तिरेकादिति न समर्थो भाव इति भावसामानाधिकरण्येन सामर्थ्यस्याप्रतिपत्तिप्रसंगात् । तथा तत्प्रतिपत्तेरव्यतिरेक एव द्रव्यत्वं सामान्यं संवेदनं प्रमाणमित्यादौ दृष्टत्वात् । कथं पुनरेकस्यानेकत्वं विरोधादिति चेत् न, तदभावे तत्प्रतिपत्तेरेवानुपपत्तेर्विरोधस्यहि विरोधिनोऽवगमे सत्येव प्रतिपत्तिः । अवगमश्च नैकस्वभाववा बुद्धया तयोरेकत्वापत्तेः । अनेकस्वभावायाश्चानेकांतमनिच्छतामसंभवात् । एवं वैयधिकरण्यादिप्रतिपत्तावपि वक्तव्यम् । ।85 ।।
धर्मी विशेष साधन भी दो प्रकार का है-धर्मी से अभिन्न और भिन्न । धर्मी से अभिन्न भी दो प्रकार का है- सपक्ष से रहित और सपक्ष से सहित | सपक्ष रहित - "सर्वमनेकान्तात्मकं सत्वात्" यहां सत्व हेतु सभी अर्थ क्रिया कारी से वयाप्त है। असमर्थ (अर्थक्रिया कारी से विपरीत) आकाश कुसुम आदि से अव्याप्त है । सामर्थ्य के एक होने पर उससे प्रदीपादि संबंधी का जल का छोड़ना, तेल का सुखाना आदि कार्य नहीं होगा, अनेक होने पर पदार्थ कोअनेकान्तात्मकता कैसे नहीं होगी? पदार्थ से उसके भेद होने के कारण यदि यह कहो तो "समर्थो भाव" इस प्रकार भाव के समानाधिकरण के रूप में सामर्थ्य की अप्रतिपत्ति का प्रसंग आयेगा । भाव के साथ सामर्थ्य के समानाधिकरण के रूप में प्रतिपत्ति होने पर वह भाव से अभिन्न ही है, द्रव्यत्वं सामान्यं संवेदनं प्रमाणं इत्यादि में देखा जाने से एक को अनेकता कैसे हो सकती है, दोनों में विरोध होने से, यह भी नहीं कह सकते, विरोधी के अभाव में विरोध की ही प्रतिपत्ति नहीं होने से, विरोधी के ज्ञान हो जाने पर ही विरोध की प्रतिपत्ति होती है। एक स्वभाव वाली बुद्धि से तो विरोधी का ज्ञान हो नहीं सकता, दोनों के एक होने का प्रसंग होने से, अनेक स्वभाव वाली बुद्धि अनेकान्त को न चाहने वालों के यहां असंभव है । इसी प्रकार वैयधिकरण आदि की प्रतिपत्ति में भी कहना चाहिये | 185 ।।
क्रियाकारकात् । 2 आदिशब्देन
वर्तिकादाहोर्द्धज्वलनस्वपरप्रकाशनतमश्छेदनस्फोटादिकरणानुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययेयोत्पादनप्राणिविशेषंदृष्टि
प्रतिबंधनमनुष्यादिदृष्टयप्रतिबंधनप्राणिविशेषमारणप्रदीपांतरकारणादि ग्राह्यं ।
3 पदार्थस्य ।
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पदार्थतः ।
भेदात् ।
भेदाभेदयोर्विधिनिषेधयोरेकत्राभिन्ने वस्तुन्यसंभवः शीतोष्णायोरिवेति विरोधः, भेदस्यान्यधिकरणमभेदस्य चान्यदिति वैयधिकरण्यं यमात्मानं पुरोधाय भेदोयं च समाश्रित्याभेदस्तावात्मानौ भिन्नौ चाभिन्नौ च तत्राऽपि तथा परिकल्पनादनवस्था, येन रूपेण भेदस्तेन भेदश्चाभेदश्चेति संकरः, येन भेदस्तेनाभेदो येनाभेदस्तेन भेद इति व्यतिकरः, भेदाभेदात्मकत्वे च वस्तुनो साधारणाकारेण निश्चेतुमशक्तः संशयः, ततश्चाप्रतिपत्तिः, ततोऽभाव इत्यानेकांतेऽष्टदूषणानि ।
'बुद्धेः ।
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