________________
बहिरंगस्य
तद्वदनुमानेऽपि। तत्राप्युक्तस्यांतरंगस्य हेत्वाभासादे'स्तद्धेतोर्भावात् ।100 ।।
यदि लिंग से होने वाला अनुमान प्रमाण ही है तो किसी अनुमान को अनुमानाभासत्व कैसे है?आचार्य कहते हैं स्वार्थ व्यवसाय रहित होने के कारण, प्रत्यक्ष के समान ।प्रत्यक्ष को भी कहीं स्वार्थव्यवसाय से रहित देखा जाता है, कहीं अनध्यवसायात्मक को कहीं संशयात्मक को और कहीं विपर्ययासात्मक को वहां प्रत्यक्ष की प्रतीति होने से वह भी अन्तरंग आवरण के उदय से, बहिरंग इन्द्रिय दोष से तथा शीघ्र भ्रमण आदि के कारण, उसी प्रकार अनुमान में भी उक्त अन्तरंग और बहिरंग हेत्वाभास, पक्षाभास आदि उसके हेतु के होने से अनुमानाभास भी होता है। 1100 ।।
तत्र त्रिविधो हेत्वाभासः, सिद्धानैकांतिकविरुद्धविकल्पात् ।असिद्धोऽपि त्रिविध एव, स्वरूपाज्ञातसंदिग्धासिद्धविकल्पात् ।तत्र स्वरूपासिद्धो यथा-नित्यः शब्दश्चाक्षुषत्वादिति। न हि शब्दस्य चाक्षुषत्वं श्रावणत्वस्यैव तत्र भातः प्रतिपत्तेः। अज्ञातासिद्धस्तु शब्दानित्यत्वे सर्वोऽपि कृतकत्वादिः। न हि तस्य कुतश्चित्परिज्ञानं प्रत्यक्षस्य स्वलक्षणविषयतया सामान्यात्मनि तस्मिन्विकल्पस्य च "स्वाकारपर्यवसायित्वेनाप्रवृत्तेः । विकल्पाकार एव सोऽपीति चेत्, कथमिदानीं तस्य पक्षधर्मत्वं शब्दें धर्मिण्यभावात्। तत्र तस्यारोपादिति चेत् न, तत्र तस्येति प्रत्यक्षविकल्पयोरन्यतरेणाप्यशक्यपरिज्ञानत्वात् ।अन्यतरासिद्ध एवायं कस्मान्न भवति मीमांसकस्य शब्दे तदभिव्यक्तिवादिनः कृतकत्वादेरभावादिति चेत् न, शक्यसमर्थनत्वे तस्य तं प्रत्यपि सिद्धत्वात्, अशक्यसमर्थनत्वे च स्वरूपासिद्ध - एवांतर्भावात् तन्नान्यतरासिद्धो नाम । 101 ।।
हेत्वाभास तीन प्रकार का हैं-असिद्ध, विरूद्ध और अनैकान्तिक के भेद से असिद्ध भी तीन प्रकार का है-स्वरूपासिद्ध, अज्ञातासिद्ध और विरूद्धासिद्ध के भेद से।वहां स्वरूपासिद्ध का उदाहरण है-नित्यः शब्दश्चाक्षषत्वात शब्द चाक्षष नहीं है स्वरूप से उसके श्रावणत्व की प्रतिपत्ति होने के कारण अज्ञातासिद्ध शब्द को अनित्य सिद्ध करने में कृतकत्वादि सभी हेतु हैं।उसका किसी भी प्रमाण से ज्ञान नहीं होता ।प्रत्यक्ष (निर्विकल्प)?का स्वलक्षण विषय होने के कारण अनुगताकार शब्द में और विकल्प को स्वसंवित्तिमात्र में सीमित होने के कारण उसमें प्रवृत्ति नहीं होने से।यदि यह कहो कि कृतकत्व भी विकल्पाकार है तो फिर उसको पक्षधर्मत्व कैसे होगा?स्वलक्षण शब्द रूप धर्मी में उसका अभाव होने से।यदि यह कहो कि शब्द में विकल्पाकार कृतकत्व आदि का आरोप होने से
' आदिशब्देनपक्षाभासादिकं ग्राह्य । ' स्वरूपतः।
अनुगताकारे। • स्वसंविन्मात्रपर्यवसितत्वेन।
स्वलक्षणे। . 'विकल्पाकारकृतकत्वादेः । ' वादिप्रतिवादिनोर्मध्य एकस्यासिद्धः।