Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 105
________________ स्पष्ट रूप से धर्मी विशेष विपरीत साधनत्व है।इसी प्रकार “पुरूषोऽस्ति भोक्तभावात्" यहां भी पुरूष के ज्ञात नहीं होने पर उपचार से उसके भोग की सिद्धि नहीं हो सकती, अन्यप्रमाण से पुरूष की प्रतिपत्ति होने पर यह अनुमान विफल हो जायगा।इसी अनुमान से उसकी पत्ति होने पर पुरूष के ज्ञात होने पर भोगोपचार और भोगोपचार से उसकी प्रतिपत्ति होने पर परस्पराश्रय होने से तात्विक होने पर भी धर्मी विशेष विपरीत साधन से भिन्न नहीं है।इस अनुमान से पुरूष के आकाश आदि के समान भोक्तृत्व की उपपत्ति नहीं होने से भोग्य वस्त के निकट होने की अपेक्षा कभी-कभी परूष के भोक्ता के रूप में होने पर पुरूष के कथंचित् अनित्य होने से भोक्तभाव साधन कूटस्थ नित्य पुरूष रूप धर्मी विशेष की अपेक्षा विपरीत सिद्ध होता है।अत: भोक्तृत्व साधन को धर्मी विशेष विपरीत साधन होने से विरुद्धत्व सिद्ध होता है। 1112।। एवं विरुद्धाव्यभिचारिणोऽपि। तत्'खल्विदमनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवदिति। तदव्यभिचारित्वमस्य तत्रैव नित्यत्वसाधनस्य प्रत्यभिज्ञायमानत्वा - देर्भावात्। विरुद्धत्वं निरन्वयविनाशविपरीतस्य सान्वयविनाशस्यैव साधनात् ।तदपि कथं नित्यत्वहेतुना प्रतिबंधादिति चेत् न, तद्विषयस्यापि नित्यत्वस्य सविनाशान्वयतद्विनाशादविशेषात्, कूटस्थे तस्मिन्निरन्वयविनाशवदर्थकियाशक्ति वैकल्येन तद्व्याप्तस्य कस्यचिदपि हेतोरसंभवात् ।कथमिदानीं अविशिष्टे विषये तस्य तद्विरुद्धत्वमिति चेत् न, तत्र कथंचिद्विरोधस्यापि भावात्तन्न तदव्यभिचारिणोऽनैकांतिकत्वं विरुद्धत्वस्यैव भावात्। कथं वा तस्य तत्वं तबलादनित्यस्तद्विरुद्ध बलान्नित्यो वा शब्द इति संशयादिति चेत, केवलस्यापि स्यात्ततोऽपि तत्र तत्संभवात्, कृतकत्वस्य निरन्वयविनाशवत्। कौटस्थ्येऽपि काल्पनिकस्य भावात्, तात्विकस्यानेकांतनांतरीयकतयोभयत्राप्यसंभवात्। ततोऽनेकांतन्यायवेदिनां विरुद्ध एव विरुद्धाव्यभिचारी, तदन्येषां तु तद्वत्केवला अपि कृतकत्वादयः संशयहेतव एवानेकांतरूपप्रक्रियापरिच्युतानां तेषां साध्यवदि तरत्रापि संभवात्। तदुक्तम्-"विरुद्धाव्यभिचारी स्यात् विरुद्धो विदुषां मतः । प्रक्रियाव्यतिरेकेण सर्वे संमोहहेतवः ।" इत्यन्येपि हेत्वाभासाः प्रतिपत्तव्याः ।।113 ।। इसी प्रकार विरुद्धाव्यभिचारी भी है।उसका उदाहरण है-अनित्यः शब्दः कृतकत्वात्घटवत् ।कृतकत्व हेतु विरुद्धाव्यभिचारी है शब्द में ही नित्यत्व सिद्ध करने की प्रतिज्ञा आदि होने के कारण।निरन्वय विनाश के विपरीत सान्वय विनाश को हेतु होने से विरूद्धत्व है।वह भी कैसे है नियत्व हेतु से विरूद्ध होने के कारण यह नहीं कह सकते 1 उदाहरणं। 2 सर्वथा नित्ये। ३ विरुद्धत्वं नास्त्यनैकांतिकत्वं कुतस्तद्विपरीते वर्तमानत्वात्, प्रकृतसाध्यद्वयस्याविशेषप्रतिपादनकाले युष्मन्मतेऽपि कथं तयोरन्योन्यविरुद्धत्वमित्याशंकते परः, सान्वयविनाशसविनाशनित्यत्वाभ्यामिति शेषः । * संदिग्धानेकांतिकत्वादिति भावः।। 5 केनचिद्वादिना प्रत्यभिज्ञायमानत्वादित्येतस्य प्रतिपक्षसाधनस्याप्रयुक्तत्वे सति केवलस्येत्यर्थ, विपक्षसाधकरहितस्यापि। 82

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