Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 100
________________ व्यापत्तेः कथं पन: सान्वयविनाशेऽप्यनित्यत्वे साध्ये न व्यभिचार: प्रमेयत्वस्य भाववदभावेऽप्यवस्तुनि भावात् तत्र च वस्तुधर्मस्यानित्यत्वस्यानुपपत्तेरिति चेत् न, तस्य कुतश्चिदप्रतिपत्तेः व्यतिरेके च भावेभ्यस्तस्य कुतो न तेषां सांकर्यम्' तत्संबंधादिति चेत् न, तेनाऽपि स्वतः संकीर्णाना मनन्यथात्वस्याकरणात्, करणे वा तदेव तेषामन्योन्यमभावस्तस्य च तेभ्योऽनर्थान्तरत्वेन तद्धेतोरेव भावादिति तस्य वैयर्थ्यमर्थातरस्य तस्य प्रागभावादिभेदिनः कथंचिद्भावाविष्वग्भावेन तद्वदेवानित्यत्वोपपत्तेः। न तद्गतत्वेनाऽपि प्रमेयत्वस्यानैकांतिकत्वं, व्यभिचारस्य निश्चितस्येव संभाव्यस्यापि तत्राभावात् ।।10811 शंकाकार कहते हैं-इस प्रकार अनैकान्तिक के दो भेद होने पर शब्द को अनित्य सिद्ध करने में प्रमेयत्व हेतु भी अनैकान्तिक हो जायगा, उसके नित्य आकाश आदि में भी होने से व्यभिचार होने से, यह कहना ठीक नहीं है।प्रमेयत्व हेतु को कूटस्थ नित्य की प्रमिति में ही अनुपयोगी होने से, उपयोगी होने पर उसको सदा ही प्रमेयत्व कैसे नहीं है?सहकारी के निकट होने के समय ही उसको प्रमेयत्व होने से, यह कहना ठीक नहीं है, सहकारी के निकट होने पर भी पहले रूप (अप्रमेयत्व) का त्याग किये बिना प्रमेयत्व की उत्पत्ति नहीं होने से और प्राच्यरूप का त्याग करने पर तो वह परिणामी नित्य ही सिद्ध होता है अतः आकाश कटस्थ नित्य नहीं है और न आकाश में होने से हेतु को व्यभिचार है सपक्ष में होने के कारण साध्य की प्रतिपत्ति के प्रतिअनकल होने से आकाश को साध्य का सपक्षत्व भी है शब्द में भी कथंचित् अभिन्न ही अनित्यत्व की सिद्धि करने से निरन्वय (सर्वथा भिन्न की नहीं) उसमें प्रमिति के असंभव होने से शब्द के साथ निष्पन्न होने से तो प्रमिति होती नहीं, उसको उससे निरपेक्ष होने से अतीत से भी नहीं होती, चिरतर अतीत के समान कार्यकाल में नहीं होने से अतीत से भी उसकी उत्पत्ति नहीं होने से बिना उत्पन्न हुए प्रमिति से शब्द को प्रमेयत्व नहीं हो सकता "नाकारणं विषय" इसका व्याघात होने से शब्द का सान्वय विनाश होने पर भी प्रमेयत्व हेतु को अनित्य साध्य में व्यभिचार केसे नहीं है प्रमेयत्व हेतु को भाव के समान अभाव रूप अवस्तु में भी होने से अभाव रूप धर्मी में वस्तु के धर्म अनित्यत्व की उपपत्ति नहीं होने से ऐसा नहीं कह सकते, उसकी किसी से भी प्रतिपत्ति नहीं होने से।भावों से उसके भिन्न होने पर उनका सांकर्य (घट का पट और पट का घट होना) कैसे नहीं होगा?भाव से संबंध होने से भी नहीं कह सकते, उसके द्वारा भी स्वरूप से संश्लिष्ट पदार्थों का अनन्यथात्व नहीं करने से करने पर वही उनका अन्योन्याभाव हो जायगा उसके उनसे अभिन्न होने के कारण उसके हेतु ही होने से प्रागभावादि भेद वाले उससे भिन्न हेतु तो व्यर्थ ही है, कथंचित् रूप से असमग्र रूप से उसी के समान अनित्यत्व की उपपत्ति होने से ।अतः आकाश में होने के कारण भी प्रमेयत्व हेतु को अनैकान्तिकत्व नहीं है, निश्चित के समान संभाव्य व्यभिचार का भी अभाव होने से।।1081 संशयकरत्वादप्यनैकांतिक वक्तव्यं । तद्यथा-श्रावणत्वं न हि तस्य शब्दे नित्यत्वेतरत्व'योरन्यत्र हेतुत्वमनवगतबहिरन्वयस्य तदनुपपत्तेः । न च तेन विना 'घटः पटो न भवति पटो घटो न भवतीति व्यावर्तकस्याभावस्य भावात्। २ स्वरूपेण संश्लिष्टनां पदार्थानां । ३ अनित्यः शब्दः श्रावणत्वात्। 77

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