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सम्यग्दर्शनाभावादिति सहचरानुपलब्धिः । व्यभिचारी हेतुरसम्यग्दृशोऽपि रूपादौ तत्वज्ञानस्य भावादिति चेत् न, तेन रूपादेरित्थंभावनिर्णयाभावात् । न ह्य ेनुपकांततन्निर्णयं तत्वज्ञानं नाम बालोन्मत्तादिज्ञानवत् । तन्न व्यभिचारकल्पनमत्र । न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटोदयः कृत्तिकोदयानुपलब्धेरिति पूर्वचरानुपलब्धिः । मुहूर्तात् प्राक् नोदगाद्भरणिः कृत्तिकोदयानुपलब्धेरिति उत्तरचरानुपलब्धिः । एवमन्यान्यपि विविधिप्रतिषेध - लिंगानि प्रतिपत्तव्यानि | 199 ।।
कारणानुपलंभ का उदाहरण - "न तत्र गृहे पाकसंभवः पावकानुपलब्धेः " कार्यानुपलंभ:- "नात्र शरीरे बुद्धिर्व्यापारादि विशेषानुपलब्धेः " । यदि यह कहो कि कार्य से रहित भी कारण होता है अतः कार्य के अभाव में कारण के अभाव की प्रतिपत्ति नहीं होती तो फिर कहीं मृत्यु का ज्ञान कैसे होता है, जिससे मृत व्यक्ति में दाहादि क्रिया की जाय, व्यापारादि विशेष की अनुपलब्धि के अतिरिक्त मृत्यु की प्रतिपत्ति नहीं होने से । अतः अविनाभाव नियम का निर्णय होने पर कार्य के नहीं होने पर कारण के अभाव का ज्ञान होता ही है । व्यापकानुपलब्धि का उदाहरण - "न तत्र शिंशपा वृक्षानुपलब्धेः " इसके संबंध में यह भी कहा जाता है कि कहीं वृक्ष के बिना शिंशपा के आकार को देखने से शिंशपा की प्रतिपत्ति होती है अतः शिंशपा वृक्ष का व्यापक कैसे हैं? लता आम्र के समान लता शिंशपा की भी संभावना होने से यह कहना ठीक नहीं है । इस प्रकार धूएं आदि में अग्नि का कारणत्व कैसे होगा? गोपालकलश आदि में बिना अग्नि के भी धूआं देखे जाने से । अग्नि से होने वाले धुएं से वह धूआं अन्य ही है, यदि यह कहते हो तो वृक्ष से व्याप्त शिंशपा से लताशिंशपा की संभावना होने पर वह भी उससे अन्य है, यह बात यहां भी समान है।
सहचरानुपलब्धिः- “नास्त्स्य तत्वज्ञानं सम्यग्दर्शनाभावात्" यदि यह कहो कि सम्यक्दर्शन के बिना भी रूपादि में तत्वज्ञान होने से सम्यग्दर्शन हेतु व्यभिचारी है तो यह कहना ठीक नहीं है, सम्यक्दर्शन के बिना होने वाले रूपादि ज्ञान में इत्थंभाव निर्णय का अभाव होने से । इत्थंभाव के निर्णय के बिना तत्वज्ञान नहीं होता, अज्ञानी और उन्मत्त के ज्ञान के समान । अतः यहां व्यभिचार की कल्पना नहीं होती ।
पूर्वचरानुपलब्धिः–“न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटोदयः कृतिकोदयानुपलब्धेः | एक मुहूर्त के बाद शकट का उदय नहीं होगा, कृतिकोदय की उपलब्धि नहीं होने से | उत्तरचरानुपलब्धिः - मुहूर्तात्प्राक् नोदगाद्भरणिः कृतिकोदयानुपलब्धेः | एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय नहीं हुआ कृतिकोदय के उपलब्ध नहीं होने से । इस प्रकार अन्य भी विविध प्रतिषेधलिंग जानने चाहिये। 199 ||
यदि
तत्प्रभवमनुमानं, प्रमाणमेव तर्हि, कस्यचित्कथं तस्य तदाभासत्वममपीति चेत्, स्वार्थव्यवसायवैकल्यात् प्रत्यक्षवत् । दृश्यते हि प्रत्यक्षस्य तद्वैकल्यं क्वचिदव्युत्पत्याऽऽत्मनः क्वचित्संशयात्मनः क्वचिद्विपर्यासात्मनश्च, तस्य तत्र प्रतीतेः । तदप्यंतरंगावरणोदयाद्बहिरंगादिंद्रियदोषादाशुभ्रमणादेरपि ।
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सम्यग्ज्ञानमिति यावत् ।
पुंस इति शेषः ।
अकृततन्निर्णयं ।
तच्छब्देन लिंगग्रहणं ।
5 अनध्यवसायात्मनः ।
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