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के कारण वह असिद्ध हो सकता है। स्वरूप से असिद्ध होने के कारण वह हेतु नहीं है, यह नहीं कह सकते। शब्दविशिष्ट के अनित्यत्व को साध्य होने के कारण । अनित्यमात्र को अनित्य होने के कारण अनित्यत्व को हेतुत्व नहीं है, इसमें मीमांसक को भी कोई विवाद नहीं है, अन्यथा घटादि में भी अनित्यत्व के अभाव का प्रसंग आयेगा । शब्द के अनित्यत्व के अभाव में अनित्यत्व मात्र का अभाव कैसे होगा, जिससे शब्द के अनित्यत्व में अनित्यत्व को हेतु माना जाय, यह कहना भी ठीक नहीं है । शब्द के समान अनित्यत्व के अभाव में भी घटादि के वस्तुत्व में कोई बाधा नहीं होने से । अतः वस्तुत्व के समान शब्द में भी अनित्यत्व सामान्य को भी हेतुत्व सिद्ध होता है अन्यथा विशेष में भी अनित्यत्व नहीं हो
सकता । 1103 ||
न त्रित्वमेवासिद्धस्याश्रयासिद्धस्यापि
भावात् ।
एवमपि तद्यथा - द्रव्यमाकाशं
च
गुणाश्रयत्वादित्याकाशासत्ववादिनं बौद्धं प्रत्यस्याश्रयत्वासिद्धत्वोपपत्तेरिति चेत् न आश्रयवत्स्वरूपस्यासत्वे स्वरूपासिद्ध एवांतर्भावात्, सत्वे चान्यथानुपपत्तौ गमकत्वस्यान्यथा व्यभिचारित्वस्यैवोपपत्तेर्भागासिद्धस्य भावान्न त्रित्वमसिद्धस्य । तद्यथा-चेतनास्तरवः स्वापादिति । न हि तरुषु सर्वत्र स्वापः पत्रसंकोचलक्षणस्य तस्य द्विदलेष्वेव भावादिति चेत् भवत्वेवं न तथाऽपि दोषः, स्वाश्रयेषु तेन पशुमनुष्यादिनिदर्शनबलेनचेतनत्वं 'तर्वन्तरेष्वपि तदव्याप्तहेतुस्थापनद्वारेण तस्य व्यवस्थापनात् । परेऽपिं तरवश्चेतनास्तत्वात् स्वापव ेत् प्रसिद्धतरुवदिति । तत् नाऽस्य भागासिद्धत्वं दोषाय गमकत्वाप्रतिक्षेत् । एवमेव शब्दानित्यत्वे प्रयत्नानंतरीयकस्याऽपि भागासिद्धस्यं निर्दोषत्वकल्प नोपपत्तेः। अस्ति हि तस्यापि भागासिद्धत्वं समुद्रघोषजलधरध्वानादावभावात् । विपर्यस्तासिद्धस्त्वज्ञातासिद्ध एव न हि धूमस्तद्विपर्यासेन प्रतीयमानः स्वरूपतः परिज्ञातो नाम, तन्न ततस्तस्य पृथगसिद्धत्वम्' । ।104 ।।
व्यवस्थापयता
ऐसा होने पर भी असिद्ध तीन प्रकार का ही नहीं है, आश्रयासिद्ध के भी होने से। जैसे "द्रव्यमाकाशं गुणाश्रयत्वात्" बौद्ध आकाश को नहीं मानते, अतः उसके यहां यह हेतु आश्रयासिद्ध होता है, यह कहना ठीक नहीं है । आश्रय के समान स्वरूप के भी नहीं होने पर इसका स्वरूपासिद्ध में ही अन्तर्भाव हो जाने से, स्वरूप के होने पर गमकत्व की अन्यथानुपत्ति होने से, अन्यथा व्यभिचारित्व के ही होने से । तब भागासिद्ध के होने से असिद्ध तीन प्रकार का नहीं है। जैसे- "चेतनास्तरवः स्वापात्" सभी वृक्षों में स्वाप नहीं होता पत्रसंकोच लक्षण स्वाप के द्विदल वृक्षों में ही होने से, ऐसा होने पर भी कोई दोष नहीं हैं, उसके द्वारा पशु मनुष्यादि के निदर्शन के द्वारा चेतनत्व की स्थापना के द्वारा अपने आश्रय एकदल वाले वृक्षों में भी अव्याप्त हेतु के द्वारा चेतनत्व की व्यवस्था करने से। दूसरे (एकदल वाले) वृक्ष भी चेतन हैं चेतनत्व के कारण स्वापवाले प्रसिद्ध वृक्ष के समान । अतः इस हेतु का
एकदलेषु । 2 एकदलाः ।
अत्र मत्वर्थे प्रत्ययः ।
'भूतसंघातेन ।
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