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प्रतिषेधसाधनमपि द्विधा, विधिरूप प्रतिषेधरूपं चेति । विधिरूपमप्यनेकधा, विरूद्धं यथा, नाऽस्ति तत्र शीतस्पर्शो वह्नेरिति । वह्निः खलूष्णस्पर्शात्मा 'रूपविशेषादवगम्यमानस्तत्प्रत्यनीकस्य स्पर्शस्याऽभावं गमयति विरूद्धकार्यमत्रैव साध्ये धूमादिति । धूमो हि वह्निं तत्कार्यत्वेनावगमयंस्तद्विरोधिनः स्पर्शस्याभा वमवबोधयति । ।91 ।।
प्रतिषेध साधन भी दो प्रकार का है विधि रूप प्रतिषेधरूप, विधिरूप भी अनेक प्रकार का है- विरुद्ध, विरूद्ध कार्य और विरूद्ध अकार्य कारण | विरूद्ध का उदाहरण है - "नास्ति तत्र शीतस्पर्शो वहनेः" अग्नि उष्ण स्पर्श वाली है, रूपविशेष से जानी जाती है. उससे विरूद्ध शीत स्पर्श के अभाव का बोध कराती है । विरूद्ध कार्य-जैसे "नास्ति शीत स्पर्शो धूमात्" धूआं आग का कार्य होने के कारण आग का बोध कराता हुआ उसके विरोधी शीत स्पर्श के अभाव को बताता है। 191 | |
कारणविरूद्धकार्यमस्यैव
प्रभेदः । तद्यथा - नाऽस्य
रोमहर्षादिविशेषो धूमादिति । धूमः खलु हिमस्य तत्प्रत्यनीकदहनोपनयनद्वारे णाभावमाविर्भावयंस्तत्कार्यस्य तद्विशेषस्याभावमवबोधयति । 192 ।।
कारणविरूद्ध कार्य इसी का प्रभेद है-जैसे "नास्त्यस्य हिमजनितो रोमहर्षादिविशेषो धूमात”।धूआं ठंड के विरूद्ध अग्नि को बताने के द्वारा ठंड के अभाव को बताता हुआ ठंड के कार्य रोमहर्षादि विशेष के अभाव का बोध कराता है। 192 | |
विरूद्धकारणं, नायं मुनिः परपीडाकरः कृपालुत्वादिति । कृपालुत्वं हि परहितनिबंधनतयाऽनुग्रहमुपस्थापयत्तं द्वतस्तत्पीडा कर मपाकरोति । । 93 ।।
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विरूद्ध कारण - "नायं मुनि परपीड़ाकरः कृपालुत्वादिति" यह मुनि दूसरे को कष्ट देने वाले नहीं हैं, कृपालु होने कारण कृपालुत्व हेतु परहित का कारण होने से अनुग्रह की स्थापना करता हुआ, कृपालु मुनि के परपीड़ाकर का निराकरण करता है । । 93 ।।
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कारणविरूद्धकारणमस्यैव प्रभेदः । तद्यथा - नाऽस्य मुनेर्मिथ्यावादस्तत्वशास्त्राभियोगादिति । तदभियोगो हि रागादिरहितस्य तत्कारणतया तत्वज्ञानसद्भावमुपनिपातयंस्तत्प्रत्यनीकमिथ्याज्ञाननिवृत्तिनिवेदनद्वारेण तत्रिबंधनमिथ्यावादस्य
विरहं निरपवादमुपपादयति । ।94 ।।
कारण विरूद्ध कारण इसी का प्रभेद है - " नास्यमुनेर्मिथ्यावादस्तत्वशास्त्राभियोगात्" तत्वशास्त्राभियोग रागादि रहित के तत्वज्ञान का कारण होने से तत्वज्ञान के सद्भाव को
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हिमजनितो
पिंगांगभासुराकारत् ।
मुनेः ।
3 तत्वज्ञानकारणतया ।
निर्दुष्टं ।
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