Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ धर्मी से भिन्न साधन भी अनेक प्रकार के हैं कार्य, कारण तथा अकार्यकारण | कार्यलिंग धूआं पर्वतादि में अग्नि का है, बोलना क्रिया करना आदि शरीर में जीव का कारण है, बादल का उन्नत होना वृष्टि का कारण है, भोजन करना आदि तृप्ति का कारण है । कार्यत्वानियमादिति चेत्, सत्यम्, यदि कारणमात्रस्य लिंगत्वं न चैवम्, अन्यथाऽनुपपत्तिनियमनिर्णयवत् एव तस्य तत्त्वोपगमात्तथाविधत्वं च प्रसिद्धमेव मेघोन्नतिविशेषदौ व्यवहारिणामिति निरवद्यं तस्य लिंगत्वम् | 188 ।। सौगत कहते हैं - कारण को लिंगत्व कैसे है? सामर्थ्य, प्रतिबंध आदि कारणं नंतर के बिना कारण के कार्यरूप होने का नियम नहीं होने से | आचार्य कहते हैं- यह कहना ठीक है - यदि कारण मात्र को साधन कहा जाय किंतु कारण मात्र को साधन नहीं कहा गया है, अन्यथानुपपत्ति नियम वाले कारण को ही लिंगत्व माना जाने से और मेधोन्नति विशेष आदि में वृष्टिआदि के अन्यथानुपपत्ति का नियम व्यवहार में प्रसिद्ध ही है । अतः कारण को लिंगत्व दोषरहित है ।। 88 ।। अकार्यकारणं पुनर्द्वैधा, साध्येन समसमयं विभिन्नसमयं चेति । समसमयं रसादि रूपादेः, शरीराकारविशेषो जीवस्य । प्रतिपद्यंते गाढमूर्च्छाद्यवस्थायां तद्विशेषदर्शनाज्जीवत्ययमिति प्रतिपत्तारः । कथमन्यथा तदवस्थापनोदाय तेषां चिकित्साविधावुपत्रकम् इति । विभिन्न समयं पुनरद्य भास्करोदयः उत्तरेद्युस्तदु दयस्य । नाऽवश्यंभावस्तदुदयस्य कदाचित्पतिव्रतया तत्प्रतिबंधस्य श्रवणादिति चेन्न, 'जनश्रुतिमात्रविश्वासेन व्यभिचारकल्पतस्यायोगात्, अन्यथा पुत्रस्य 'पितृप्रभवत्वानुमानमपि न भवेत् द्रोणवदपितृकस्यापि तद्भावस्य संभवात् । अस्ति हि तत्रापि जनश्रुतिः "द्रोणः कलशादुत्पन्न" इति । कथमेवमप्युत्तरोदयं प्रत्यकार्यत्वमस्येति चेत्, ततः प्रागेव भावात् । तथाऽप्युत्तरस्य कारणत्वे "प्राग्भाव सर्वहेतुनामित्यस्य व्यापत्तिः । तं प्रत्यकारणत्वमपि चिरव्यवहितत्वेन, तत्काल प्राप्त्यभावात् । अन्यथा तादृशादेवाविद्यातृष्णादेर्मुक्तिंगतस्यापि संसारोत्पत्तेर्न मुक्तिरात्यंतिकी भवेत् । 189 ।। अकार्यकारण दो प्रकार का है- - साध्य से समसमय और विभिन्न समय । समसमय रसादि रूपादि का है, जीव का शरीर का अकार विशेष है । जानने वाले गाढ़ मूर्च्छा आदि की अवस्था में शरीराकार विशेष को देखकर यह जीता है, ऐसा जानते हैं, अन्यथा मूर्च्छा को दूर करने के लिए उनकी चिकित्सा का आरंभ क्यों किया जाता है, विभिन्न समय-आज सूर्य का उदय होने से कल सूर्योदय होगा, यह अनुमान | प्रतिपक्षी कहते हैं -कहीं-कहीं पतिव्रता के द्वारा उसका प्रतिबंध सुना जाता है, अतः आज का सूर्योदय कल के सूर्योदय निराकरणाय । 2 ज्ञात्वारभ उपकमः । उत्तरेद्यु भास्कर उदेष्यति अद्य भास्करोदयात् । शांडिल्या | 5 अयं पितृप्रभवः पुत्रवात् । 3 4 62

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140