Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 77
________________ गमकत्वं प्रत्यनंगत्वात् । नाऽपि सपक्षे सत्वेन, विनाऽपि तेन केवलव्यतिरेकिणो गमकत्वनिवेदनात्। नाऽपि विपक्षासत्वेनासद्विपक्षस्यापि सर्वमनेकांतात्मकं सत्वादित्यादेः स्वसाध्यप्रत्यायनसामर्थ्यस्याग्रे निरूपणात् । नाऽपि पक्षधर्मत्वादि त्रयेण, सत्यपि तस्मिन् सः श्यामस्तत्पुत्रत्वादितरतत्पुत्रवदित्यत्र तत्वस्यागम- कत्वात् । अस्ति ह्यत्र तत्त्रितयं धर्मिणि सपक्षे च श्यामे तत्पुत्रत्वस्य भावादश्यामादन्यपुत्राद' पवृत्तेश्च । । 77 ।। साधन का क्या लक्षण है, जिससे अनुमान होता है, यह पूछने पर बौद्ध कहते हैं- पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व तथा विपक्ष में असत्व इन तीन लक्षणों वाला हेतु होता है। आचार्य कहते हैं बौद्धों का यह कथन समीचीन नहीं है। ऐसा होने पर रोहिणी का उदय होगा, कृतिका का उदय होने से, यहां पक्षधर्मत्व का अभाव होने से हेतु गमक नहीं होगा। यहां पक्षधर्मत्व का अभाव है, रोहिणी धर्मी में उदय हाने वाले साध्य में कृतिकोदय हेतु का अभाव होने से बौद्ध कहते हैं यह दोष नहीं है, काल को धर्मी होने से काल में उदेष्यति साध्य का सदभाव होने से। ऐसा प्रयोग करना चाहिये | मुहूर्त के बाद का समय रोहिणी उदय से युक्त होगा, कृतिका का उदय होने से पहले देखे हुए रोहिणी के उदय के समान । यह भी ठीक नहीं है, मुहूर्त परिमाण काल के धर्मी होने पर भी लोहार की कुटिया के धुएं से पर्वत में अग्नि के अनुमान का प्रसंग आने से दोनों ही जगह की पृथ्वी को धर्मी होने से हेतु को पक्षधर्म होने से। यह दोष नहीं है, अविनाभाव नियम का अभाव होने से दोष है, यदि यह कहते हो तो कालादि धर्मी की कल्पना की कोई आवश्यकता नहीं है "उदेष्यति शकटं कृतिकोदयात" यहां भी पक्ष धर्मत्व को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, पक्षधर्म के किंचित् होने पर भी गमकत्व के प्रति उसके निष्प्रयोजन होने से सपक्ष में होना भी हेतु का लक्षण नहीं है, सपक्ष में नहीं होने पर भी केवल व्यतिरेकी हेतु को गमकत्व बताया जाने से।विपक्ष में असत्व भी हेतु का लक्षण नहीं है, विपक्ष के न होने पर भी "सर्वमनेकान्तात्मकं सत्वात्" इत्यादि को अपने साध्य को सिद्ध करने में समर्थता का आगे निरूपण किया जाने से। पक्षधर्म, सपक्षसत्व और विपक्षे असत्व इन तीनों से भी कोई प्रयोजन नहीं है, इन तीनों के होने पर भी “सः श्यामः तत्पुत्रत्वादितरतपुत्रवत्" इस अनुमान में तत्पुत्रत्वात हेतु साध्य को सिद्ध नहीं करता । पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व तथा विपक्षे असत्व ये तीनों बातें धर्मी तथा सपक्ष के श्याम होने में तत्पुत्रत्व हेतु होने से किन्तु किसी अन्य पुत्र के अश्याम भी होने से तत्पुत्रत्व हेतु को गमक नहीं होने से ।। 77 || स्यान्मतं न पक्षधर्मत्वादिकं साक्षाल्लक्षणं लिंगस्याविनाभावस्यैव तथा तत्वात्तस्य तु तत्रैव' भावात् । तदपि तल्लक्षणत्वेनोक्तं, ' ततोऽविनाभावविरहेऽपि तद्भावो न दोषाय तद्वादिन' इति, तन्न | प्रत्येकं पक्षधर्मत्वाद्यभावेऽप्यविनाभावस्य 1 सर्व जीवच्छरीरं सात्मकं प्राणादिमत्वात् व्यतिरेके भस्मवदित्यस्य, सर्व क्षणिकं सत्वात् तत्र खरविषाणवदित्यस्य । 2 ज्ञापन । 3 4 5 तस्मिन्सत्येव । "तस्य तु तत्रैव भावा" दित्यनेनाविनाभावस्य व्याप्यत्वं पक्षधर्मत्वादिकस्य व्यापकत्वं चाभिहितं यतः । 7 सौगतस्य । अनुमाने । व्यावृत्तेः । 6 54

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