Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 78
________________ निरूपितत्वात्तत्समुदायेन तदभावेऽपि संति प्रमाणानीष्टसाधनादित्यादौ तद्भावात्तन्न त्रैरूप्यं साधनलक्षणम् ।।78 ।। शायद यह कहो कि हेतु का पक्षधर्मत्वादि साक्षात् लक्षण नहीं है, अविनाभाव ही साक्षात् लक्षण है। अविनाभाव के पक्षधर्मत्वादि के होने पर ही होने से पक्षधर्मत्वादि को भी हेतु का लक्षण कहा है ।अतः अविनाभाव के बिना भी त्रैरूप्य का होना सौगत के लिये दोष का कारण नहीं है।पक्षधर्मत्वादि प्रत्येक के अभाव में अविनाभाव को निरूपित करने से तथा तीनों के समुदाय रूप में अभाव होने पर भी "संति प्रमाणानीष्टसाधनात्" इत्यादि में अविनाभाव के होने से ।अतः त्रैरूप्य हेतु का लक्षण नहीं है।।78 ।। नाऽपि पांचरूप्यं तत्राऽप्यविनाभावस्यानियमात् ।पक्षधर्मत्वे सत्यन्वयव्यतिरेकावबाधितविषयत्वमसत्प्रतिपक्षत्वं च पांचरूप्यं न चेह तन्नियमः, प्रकृते हेतौ तदभावेऽपि तद्भावात्, तत्पुत्रादौ तद्भावे तदभावादस्ति हि तत्पुत्रत्वस्य पक्षधर्मत्वमन्वयव्यतिरेकावबाधितविषयत्वमपि सः श्याम इति पक्षस्य प्रत्यक्षादिना बाधानुपलब्धेरसत्प्रतिपक्षत्वमपि श्यामत्वविपर्ययसाधनस्य प्रत्यनुमानस्याप्रतिपत्तेः । तन्न त्रैरूप्यादिकं लक्षणं लिंगस्य साध्याविनाभावनियमस्यैव तत्वोपपत्तेः ।सति तन्निर्णये त्रैरूप्यादिभाववत्तदभावेऽपि साध्यप्रतिपत्तेरावश्यकात् ।।79 ।। पांचरूप्य भी हेतु का लक्षण नहीं है, पांचरूप्य के होने पर भी अविनाभाव का नियम नहीं होने से ।पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व, विपक्षाद् व्यावृति, अबाधितविषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व ये पांचरूप्य हैं।इन पांचों के होने पर भी अविनाभाव का नियम नहीं है।"संति प्रमाणानीष्टसाधनात्" यहां इष्टसाधनात् हेतु में पांचरूप्य के नहीं होने पर भी अविनाभाव होने से , तत्पुत्रत्वादि में पांचरूप्य के होने पर भी अविनाभाव नहीं होने से ।तत्पुत्रत्व हेतु में पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व, विपक्षाद् व्यावृत्ति, अबाधित विषयत्व तथा असत्प्रतिपक्षत्व भी है।सः श्यामः तत्पुत्रत्वात् में पक्ष के प्रत्यक्षादि प्रमाण से कोई बाधा नहीं होने से अबाधित विषयत्व तथा श्यामत्व के विपरीत साधन के प्रति किसी अनुमान की प्रतिपत्ति नहीं होने से असत्प्रतिपक्षत्व भी है।अतः त्रैरूप्य या पांचरूप्य हेतु के लक्षण नहीं हैं, साध्य के साथ साधन के अविनाभाव का नियम से होना ही साधन का लक्षण होने से।अविनाभाव का निर्णय होने पर त्रैरूप्यादि के होने पर जैसे साध्य की प्रतिपत्ति होती है, उसी प्रकार त्रैरूप्यादि के नहीं होने पर भी साध्य की प्रतिपत्ति आवश्यक होने से।।79 ।। एवमपि स्वभावकार्यानुपलब्धिभेदेन त्रिविधमेव लिंगं ।अविनाभावस्य तत्रैव नियमादिति चेत्, न। रसादे रूपादावतत्स्वभावादेरपिगमकत्वप्रतिपत्तेः। न हि रसादे रूपादिस्वभावत्वं भेदेन प्रतिपत्तेः। नाऽपि तत्कार्यत्वं समसमयत्वात। तत्कारणकार्यत्वादस्त्येव तस्य तत्कार्यत्वं पारंपर्येणेति चेन्न, 'इन्धनविकारस्यापि 'सपक्षे सत्वं विपक्षाद् व्यावृत्तिश्च । 'त्रैरुप्यादिभावे सति यथा साध्यप्रतिपत्तिः । 'बौद्धः प्रत्यवतिष्ठते, अविनाभाव नियमस्य लिंगलक्षणत्वेऽपि। 'उत्तररूपलक्षणकारणभूतप्राक्तनरूपलक्षणकार्यत्वात्। 55

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