Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ निर्विकल्प ज्ञान है उससे सुषुप्तादि के ज्ञान के समान वस्तु का ज्ञान नहीं होता वस्तु परिच्छित्ति होने पर भी सब वस्तुओं का ज्ञान नहीं होता, कारण को ही विषय माना जाने से।सभी कारण नहीं हैं समसमय और उत्तर समय को अकारण होने से।अन्यथा “प्राग्भावः सर्वहेतूनां" इसका विरोध हो जायगा ।निर्विकल्पक ज्ञान के एक स्वभाव वाला होने से उससे अनेक अर्थ का ज्ञान नहीं हो सकता, नित्य एक स्वभाव वाले हेतु से भी देशादि भिन्न अनेक वस्तु की उत्पत्ति का प्रसंग होने से, उसके निषेध के अभाव का प्रसंग होने से। प्रति व्यक्ति की प्रतिपदार्थ की मुख्यता के अभाव में पृथक अर्थ के उपदेश को भी नहीं होने से।।64|| 'भवत्वेकमनेकस्वभावमेव तद्वेदनं युगपन्नानाकारतया स्वतस्तस्य संवेदनादिति चेन्न। कमेणापि तद्रूपतया तस्य तत एव प्रतिपत्तिसंभवात्। 'तादृशसंवेदनात्मा भगवानहन्नेव न सुगतस्तस्य तद्विलक्षणतया तद्वादिभिरभ्यनुज्ञानात्। तन्न सुगतस्य सर्वज्ञत्वं, नापि हरिहरादीनामन्यतमस्य। तवेदनस्यापि सकलविषयस्य प्रत्यर्थमाभिमुख्याभावे सतीदंतयेदंतया वस्तुपरिच्छित्तेरनुपपत्त्या तथा तद्देशनाभावप्रसंगात् ।प्रतिव्यक्त्यभिमुखतया तस्य मेचकत्वे च कमेणापि ताद्रूप्योपपत्त्या पूर्ववदर्हत एव तादृश एवात्मनः सर्वज्ञत्वोपपत्तेः। नेश्वरादेस्तस्य तद्रूपतया परैरनभ्युपगमात् । ततो नैकस्याप्येकांतवादिनः सर्ववेदित्वमित्युपपन्नमर्हत एव भगवतस्तद्वेदित्वं, तत्रैव स्याद्वादन्याय नायके जगदुदरविवरवर्तिनिरवशेषपदार्थसार्थसाक्षात्कारणस्यास् णस्याध्यक्षस्य तस्योपपत्तेरितरत्र विपर्यासादिति ।।65 ।। सौगत कहते हैं-एक तथा अनेक स्वभाव वाला उनका ज्ञान हो यही मान लो, एक साथ नाना आकार रूप से स्वतः उसकी प्रतीति होने से यह कहना भी ठीक नहीं है, कम से भी नाना आकार रूप से उसको उसी ज्ञान से प्रतिपत्ति की संभावना होने से कम और युगपत् रूप से अनेक रूप का संवेदन करने वाले भगवान अर्हन्त ही हैं, सुगत नहीं हैं, उसको उससे विलक्षण रूप से सौगत के द्वारा स्वीकार किये जाने से।अतः सुगत सर्वज्ञ नहीं हैं, न हरिहरादि में से ही कोई सर्वज्ञ है, उनके ज्ञान को सकल विषयों के प्रति मुख्यता के अभाव में इदंतया इदंतया वस्तु का ज्ञान न होने से उस प्रकार उनके उपदेश के अभाव का प्रसंग होने से।प्रति व्यक्ति की अभिमुख्यता से हरिहरादि के ज्ञान को अस्पष्टहोने पर कम से भी उसी प्रकार उनके उपदेश को उपपत्ति होने से पहले के समान (अशेष घातिया कर्मरूपी मल के क्षय से यथार्थ वस्तु को जानने वाले अतिशय निर्मल ज्ञान वाले) भगवान अर्हन्त को ही सर्वज्ञत्व का उपपत्ति होने से।ईश्वर को सर्वज्ञत्व नहीं है उसको उक्त प्रकार का पर मताबलंवियों के द्वारा नहीं माना जाने से।अतः किसी भी एकान्तवादी को सर्वज्ञत्व नहीं सिद्ध होता। अतः भगवान अर्हन्त को ही सर्वज्ञत्व सिद्ध होता है उन्हीं स्याद्वाद न्याय के नायक भगवान अर्हन्त में संसार में रहनेवाले संपूर्ण पदार्थ को 'सुगतः। ' प्रतीतेः। ३ कमयौगपद्याभ्यामनेकरूपसवेदनात्मा। पूर्णस्य।

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140