Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 57
________________ तदाकार होने से संवेदन के द्वारा विषय ज्ञान का नियम मानने पर केशमशकादि में उनके संवेदन का क्या नियम है? केशमशकादि में तदाकारत्व तो हो नहीं सकता, केशमशकादि के असत् रूप होने से वहां तदाकारत्व की उत्पत्ति नहीं होने से केशमशाकादि में तदाकारत्व मानने पर तो सभी असत् संवेदन के विषय हो जायेगे।अतदाकार मानने पर केशमशकादि के समान संपूर्ण अविद्यमान का भी संवेदन होना चाहिये, समानता होने से किसी का भी प्रतिवेदन नहीं होता ।अतः असत् रूप का प्रतिवेदन नहीं होता ।अतः प्रत्यक्ष के लक्षण में उसका खंडन करने के लिए अभ्रान्त ग्रहण उत्पन्न नहीं होता ।स्वयं ही वेदन नहीं होने पर उसका खंडन करना उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे कि किंशुक के स्वयं लाल होने पर उसको लाल रंग से रंगना व्यर्थ है। 151 ।। कथं पुनरसत: केशादेराकारार्पणवद्विषयत्वमपीति चेत्, स्यादयं प्रसंगो यदि तस्य स्वशक्तितो विषयत्वं न चैवं वेदनसामर्थ्यादेव तद्भावात्तादृशं तत्सामर्थमस्यांतराददृष्टविशेषाद्वाह्यादपि गरलास्वादकामलादेरिति प्रतिपत्तव्य मनुमंतव्यं चेदमित्थम्। अन्यथा क्वचित्कस्यचिदपि व्यामोहस्यानुपपत्त्या तद्व्यवच्छेदार्थस्य शास्त्रस्य' वैफल्योपनिपातात्। असदर्थप्रतिवेदनादपरस्य च व्यामोहस्यानुपपत्तेः । ततः स्थितं स्वशक्तितो विषयनियमः संवेदनस्यतत्त्वाद - सद्विषय नियमवदिति। न कस्याप्यसतः संवेदनं केशादेरपि देशांतरादौ सत एव 'कामलिना प्रतिवेदनादिति केचित् । तन्न ।तद्वेदनस्य यथावस्थिततत्केशादि विषयत्वे विभ्रमत्वाभावापत्तेः ।अतद्देशादित्वेन ग्रहणाद्विभ्रमत्वमिति चेत् न, अतद्देशत्वादेस्तत्रासत्वात्। सतोपि तस्य ग्रहणे केशादेरेव किं न स्यात्, यतस्तत्प्रतिपत्तिरसत्ख्यातिरेव न भवेत् अर्थविषयैव तद्वित्तिस्तदर्थस्य त्वलौकिकत्वात्तत्र विभ्रमाभिमानो लोकस्येति मतं यस्य तस्यापि किमिदं तदर्थस्यालौकिकत्वं? 'समानदेशकालैरप्यन्यैस्तदर्शननिमित्ताभावेना दृश्यत्वमिति चेत्, किं पुनस्तन्निमित्तं यदभावात्त"स्यादृश्यत्वं ।काचादिरेव कारणदोष इति चेत्, व्याहतमिदं वस्तुसद्विषयवेदनहेतोर्दोषत्वमिति चक्षुरादेरपि तत्त्वापत्तेः ।न चासावदोष एव तच्चिकित्सायामनर्थत्वप्रसंगात् ।।52 ।। 1 "प्रामाण्यं व्यवहारेण शास्त्रं मोहनिवर्त्तनमिति वाक्यात् । ' संख्यातिरसत्ख्यातिः प्रसिद्धार्थख्यातिरात्मख्यातिर्विपरीतार्थख्यातिः स्मृतिप्रमोष इत्येवंरूपस्यापरस्येति भावः। ' भवतीति शेषः । * पुंसा। सांख्याः। 6.यथार्थस्थित तथा च न कस्याप्यसतः संवेदनमित्यादि न स्यात। पर: प्राह। ५ पुंभिः । 'केशादिदर्शन। 10 विषयस्य। 'केशादेः। ' वस्तुसद्विषयवेदनहेतुत्वाविशेषत् । गुणः ।

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