Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 20
________________ वह हेतु संक्षेप में दो प्रकार का है- विधि साधन और प्रतिषेध साधन। विधि साधन भी दो प्रकार का है - धर्मी तथा धर्मी विशेष के भेद से। धर्मी विशेष साधन दो प्रकार का है- धर्मी से अभिन्न और धर्मी से भिन्न। धर्मी से अभिन्न साधन भी सपक्ष से रहित और सपक्ष से सहित के भेद से दो प्रकार का है। धर्मी से भिन्न साधन अनेक प्रकार का है। प्रतिषेध साधन भी विधि रूप और प्रतिषेध रूप के भेद से दो प्रकार का है। पुनः विधि रूप और प्रतिषेध रूप साधन के अनेक भेद हैं। हेत्वाभास तीन प्रकार के हैं - असिद्ध, विरूद्ध और अनैकान्तिक। साध्य का लक्षण बताते हुए कहा है कि जो प्रत्यक्षादि प्रमाणों से अबाधित, इष्ट और प्रतिवादी की अपेक्षा असिद्ध हो वही साध्य है, इसके विरूद्ध साध्याभास हैं। अनुमान में दृष्टान्त का होना अनिवार्य नहीं है फिर भी दृष्टान्त का प्रयोग प्रायः किया जाता है। अतः दृष्टान्त तथा दृष्टान्ताभास का जानना भी आवश्यक है। जिसमें साध्य और साधन का संबंध ज्ञान होता है, वह दृष्टान्त है। वैधर्म्य से यथा शब्दोऽनित्यः कृतकत्वात् घटवत् यहां घट साधर्म्य से दृष्टान्त है। वैधर्म्य से - यथा आकाश। यहां घड़े और आकाश में साध्य साधन का सम्बंध अन्वय और व्यतिरेक से जाना जाता है। दृष्टान्ताभास नौ साधर्म्य के तथा नौ वैधर्म्य के हैं__साधर्म्य से - साध्यविकल, साधनविकल, उभयविकल, संदिग्धसाध्य, संदिग्ध साधन सन्दिग्धोभय, अनन्वय, अप्रदर्शित अन्वय तथा विपरीतान्वय ये नौ साधर्म्य दृष्टान्ताभास हैं तथा साध्याव्यावृत्त, साधनाव्यावृत्त, उभयान्यावृत्त, संदिग्ध साध्यव्यतिरेक, संदिग्धसाधन व्यतिरेक, संदिग्धोभय व्यतिरेक, अव्यतिरेक, अप्रदर्शित व्यतिरेक और व्यतिरेक ये नौ वैधर्म्य से दृष्टान्ताभास हैं। इस प्रकार अठारह दृष्टान्ताभास है। आगम निर्णय प्रकरण आगम निर्णय प्रकरण में आचार्य ने आगम को पृथक् प्रमाण सिद्ध करते हुए कहा है कि इसका अनुमान में अन्तर्भाव नहीं किया जा सकता। क्योंकि दोनों के विषय भिन्न है। आप्त का उपदेश ही आगम है उसकी प्रमाणता उसमे उसके विषय का ज्ञान होने से औपचारिक रूप में ही है मुख्यतः तो विषय की प्रतिपत्ति को ही प्रमाणता है। शब्द केवल वक्ता की इच्छा में ही प्रमाण है, बाह्य अर्थ में नहीं,यह कहना युक्ति संगत नहीं हैं। आगम की प्रमाणता आप्त का उपदेश होने के कारण है, वह आप्त सर्वज्ञ वीतरागी और हितोपदेशी है अतः उसके वचन अविसंवादी होने से प्रमाण हैं। शब्द को पौद्गलिक बताया है। कहा है - पुद्गलविवर्तः शब्दः इन्द्रियवेद्यत्वात् कलशादि संस्थानवत्। शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है और श्रोत्रेन्द्रिय प्राप्यकारी है वह प्रत्यासन्न विषय को ही ग्रहण करती है। आगम के विषय पदार्थों का अनेकांत, परिणाम, मोक्षमार्ग तथा उसके विषय-जीव अजीव आदि सात तत्त्व हैं। ....... 19 .

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