Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ 1 तो नहीं है, यह तो कायरता है । पहले भी राजा लोग युद्ध करते थे, पर उनमें कुछ नियमों का पालन किया जाता था । निश्चित समय पर समान - शक्ति के विपक्षियों के साथ आमने-सामने युद्ध होता था, वह वीरों का ढंग था । आजकल की प्रणाली कायरों की प्रणाली है । पञ्च पाप ही इस कुविद्या का मूल है। इन पाँच पापों का त्याग ही मानव जाति के रक्षा का एकमात्र मार्ग है। यदि कोई एक राष्ट्र इन पञ्च महापापों का त्याग कर दे, तो वह स्वयं इस कुविद्या के प्रपञ्च से बच जायेगा । फिर संसार-भर के बम भी उस पापहीन राष्ट्र को हानि नहीं पहुँचा सकते हैं । और भी कहा — उन्नति की बड़ी-बड़ी योजनाओं से, सुन्दर प्रस्तावों से विश्व का कल्याण नहीं होता । संसार के जीव अथवा उनके समुदाय रूप राष्ट्र तभी सुखी होंगे, जब वे हिंसा - लंपटता- झूठ - चोरी तथा अधिक तृष्णा का त्याग करेंगे, तब ही आनंद और शांति का साम्राज्य संभव होगा । गरीबी का सफल इलाज • आज जगत् में कोई गरीबी के कारण दुःखी है, वह धनवान् को सुखी देखकर अन्तर्दाह से संतप्त होता हुआ उसके समान सम्पत्तिशाली बनना चाहता है। उसके लिये कोई यह उपाय सोचते हैं कि उस धनी के धन को छीन लिया जाये, बस इसके सिवाय निर्धनता दूर करने का कोई दूसरा उपाय नहीं है । इस सम्बन्ध में आचार्य शान्तिसागर जी ने मार्मिक शिक्षा दी – “गरीबी के संताप को दूर करने के लिये हिंसा - झूठादि पापों का परित्याग कर दयामय जीवन व्यतीत करना है।" गरीब दो प्रकार के हैं— 1. जो हृष्ट-पुष्ट गरीब आजीविका - विहीन हैं, उन्हें आजीविका का साधन उपलब्ध कराना चाहिये। 2. जो गरीब अंगहीन है, अतिबालक, अतिवृद्ध हैं, जिनमें कमाने की शक्ति नहीं है, उनका रक्षण करना चाहिये । '— “जगत् में रूप, विद्या, धन में से कोई भी एक विशेषता होती है, तो जीव आदर को प्राप्त करता है, किन्तु तीनों विशेषताशून्य सर्वत्र तिरस्कार का पात्र बनता है" - आचार्यश्री के इस कथन से भाव प्रकट होता है, कि गरीब को विद्यार्जन करना चाहिये। गरीबी दूर करने का उपाय धन की छीना-झपटी, कलह, अनीति तथा अत्याचार नहीं है; बल्कि उसका प्रशस्तमार्ग है— इन्द्रियों का निग्रह और संयम की साधना | पवित्र पुरुषार्थ के द्वारा सुख पाना हमारे हाथ में है । विपत्ति के आने पर भी हिम्मत हारना सच्चे पुरुषार्थी का धर्म नहीं है । -- राज्यधर्म पर प्रकाश • राज्यधर्म के सम्बन्ध में पूज्य आचार्यश्री के तर्कसंगत शुद्ध विचार थे - " रामचन्द्र आदि ने राज्य किया था । उनका चरित्र राजकीय जीवन में अनुकरणीय है। जब दुष्टजन राज्य पर आक्रमण करें, तब शासक को प्रतिकार करना पड़ता है, यह भले ही करें; किन्तु दूसरे राज्य को छीनने के लिए किसी भी पर आक्रमण नहीं करना चाहिये । निरपराध प्राणी की रक्षा करनी चाहिये । राजा का कर्त्तव्य है कि बुद्धिपूर्वक की जानेवाली हिंसा को बंद करें। शिकार स्वयं न खेले और न दूसरों की 00 12 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116