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कथन हो । 3. जिसमें सारभूत बातें कही गई हो । 4. जिसमें गूढ़ बातों का निर्णय किया गया हो । 5. जो पुनरुक्ति आदि दोषों से रहित हो । 6. जिसमें हेतु या प्रमाणपूर्वक कथन किया गया हो। 7. जो तथ्यात्मक हो ।
सूत्र लक्षण की इस कसौटी पर कसने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सम्राट् खारवेल का शिलालेख किसी सूत्र - ग्रंथ का प्रणयन तो नहीं था, किंतु उसमें सूत्र- -शैली का भरपूर प्रयोग किया गया है। इसका साधार विवरण निम्नानुसार है—
1. अल्पाक्षरत्व
सामान्यत: शिलालेख में सूत्रशैली के इस अंग का ही प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इसमें लिप्यासन या लेखन की आधार - सामग्री की सीमितिता, लेख उत्कीर्ण करने की कठिनता तथा उसमें लोकरुचि बनी रहे इस निमित्त लेखन - सामग्री की सीमितिता आदि कारणों से शिलालेख - सीमित शब्दों में ही लिखाये जाने की परम्परा है। अधिकांश प्रतिष्ठित शिलालेखों में तो इस बात का आद्योपांत अनुपालन हुआ है । यहाँ तक कि मंगलाचरण में भी पाँचों परमेष्ठियों की जगह मात्र दो परमेष्ठियों को नमस्कार करके ही वह मूल बात पर आ गये हैं। शब्दों की सीमितिता के कारण ही उसमें समास - बहुल प्रयोग किये हैं। यथा“लेख-रूप-गणना-ववहार विधि-विसारदेन, गोपुर - पाकार-निवेसनं, कलिंग-पुवराज निवेसिनं, सीरि- कडार - सरीरवता, वितध मुकुट, निखित- छत - भिंगारे, मणि - रतनानि ” इत्यादि ।
यद्यपि कई विशेषणों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आत्मश्लाघा के लिये उसने शब्द-सीमितिता की मर्यादा का उल्लंघन किया है, किंतु सूक्ष्मता से विचार करने पर प्रत्येक विशेषण किसी न किसी नवीन तथ्य की व्यापक जानकारी का प्रतिनिधित्व करता सिद्ध होता है। संक्षिप्त कथन - शैली का यह प्रमुख वैशिष्ट्य है कि यदि उस लिखित सामग्री में से एक अक्षर या एक शब्द भी कम कर दिया जाये, तो वहाँ निश्चितरूप से अर्थ एवं वाक्य में कमी या न्यूनता आ जाती है। खारवेल शिलालेख में भी यह बात पूरी तरह घटित होती है। क्योंकि जहाँ कहीं से भी एक पद भी त्रुटित या अवाच्य रहा है, वहीं वह वाक्य अधूरा रह गया है, और उसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता । यथा—
'दसमे च वसे दंड संधि साम (मयो ) भरधवस पठानं महीजयनं ..... कारापयति ।' 'सतमचवसं पसासतो वजिरधरवति........... ..समतुकपद (पुनां ) स ( कुमार )...... । '
2. असंदिग्धत्व
हाथीगुम्फा अभिलेख में अल्पसाक्षरता का पालन करने के लिये समासों एवं सीमित शब्दों के प्रयोग हुये हैं। फिर भी इसकारण से कहीं भी भ्रामक या संदेह - उत्पादक कथन उन्होंने नहीं किये हैं । न ही इसकी समास - शैली कहीं भी स्पष्ट अर्थ- बोध में बाधक बनी है । अस्पष्ट अर्थवाले या संशयोत्पादक- पदों का कहीं भी प्रयोग नहीं किया जाने से संक्षिप्त होते हुये भी हाथीगुम्फा शिलालेख का प्रत्येक कथन असंदिग्ध है।
प्राकृतविद्या�जुलाई-सितम्बर 2000
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