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वर्ष भर में एक बार किया जानेवाला प्रतिक्रमण 'सांवत्सरिक प्रतिक्रमण' कहलाता है । यह प्रतिक्रमण भी इसी 'आषाढी पूर्णिमा' को किये जाने का विधान पंडितप्रवर आशाधरसूरि ने किया है
“ आषाढान्त - सांवत्सरी प्रतिक्रमणे । ” – (अनगार धर्मामृत, 8/58) इसे ही सांवत्सरिक आलोचना' भी कहा गया है
“संवच्छरियं आलोचेदुं ।”
इसमें प्रतिक्रमण करने पर बारह उपवास किये जाने का भी उल्लेख प्राप्त होता है— “आसाढे संवच्छर-पडिक्कमणे दिज्जसु बारस - उववासा । ”
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- ( आचार्य इन्द्रनन्दि योगीन्द्र, 'छेदपिण्ड', 115 ) 5. कृषियुग-शुभारम्भ कहा जाता है कि इसी दिन प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने प्रजाजनों को कृषि आदि (असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिक्षा एवं शिल्प आदि) का ज्ञान दिया था
“ शशास कृष्यादिषु कर्मसु प्रजा: ” - ( आचार्य समन्तभद्र, स्वयम्भूस्तोत्र,, 1/2 ) अतः यह 'कृतयुग' या 'कृषियुग' का शुभारम्भ - दिवस भी माना जाता है।
इसी तथ्य की पुष्टि करते हुये आचार्य जिनसेन लिखते हैं
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“ आषाढमास - बहुल - प्रतिपददिवसे कृतो ।
कृत्त्वा कृतयुगारम्भं प्राजापत्यमुपेयिवान् । । ” – ( महापुराण, 16/190) 6. मानसून - -निर्धारक तिथि :- जैन- ज्योतिष के प्रमुख ग्रंथ 'भद्रबाहु संहिता' में लिखा हैं- “ आषाढी- पूर्णिमायान्तु पूर्ववातो यदा भवेत् ।
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प्रवाति दिवसं सर्वं सुवृष्टिः सुषमा तदा । ।”
- (भद्रबाहुसंहिता', 9/7, पृष्ठ 105 ) अर्थ:— 'आषाढ़ी पूर्णिमा' के दिन यदि पूर्व दिशा की वायु (पुरवैया हवा) सम्पूर्ण दिन भर चलती है, तो उस वर्ष वर्षा ऋतु में अच्छी वर्षा होती है और वह वर्ष सुखमय ( सुभिक्षतुमय) व्यतीत होता है।
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आषाढ़ मास में शुक्लपक्ष की कुछ अन्य भी तिथियाँ महत्त्वपूर्ण मानी गयीं हैं । इनका संक्षिप्त उल्लेख निम्नानुसार है—
1. आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी 'कथा सरित्सागर' के अनुसार यह तिथि भारतीय परम्परा में स्नान-यात्रा के लिए उपयोगी मानी गयी है—
“ तस्याषाढचतुर्दश्यां शुक्लायां प्रतिवत्सरम् ।
यात्रायां स्नातुमेत्तिम स्म नानादिग्भ्यो महाजन: ।।” – (2/136) अर्थ:- इस आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को प्रतिवर्ष विभिन्न दिशाओं से महाजन स्नान के लिये यात्रा पर जाते थे ।
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर 2000
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