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(समाचार दर्शन
शिमलामें अखिल भारतीय प्राकृत-संगोष्ठी आयोजित हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के ऐतिहासिक एवं सुप्रतिष्ठित राष्ट्रपति निवास (पूर्व वायसराय हाउस) में दिनांक 20 एवं 21 अक्तूबर 2000 के 'प्राकत के मुक्तक काव्यों में प्रगीत-परम्परा' विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें विश्वविख्यात मनीषी प्रो० गोविन्द्रचन्द्र पाण्डेय जी ने विषय-प्रवर्तन करते हुए प्राकृतभाषा और साहित्य की महनीयता पर प्रकाश डाला।
कुल चार शैक्षणिक सत्रों में चली इस विशिष्ट संगोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय उच्चतर अध्ययन संस्थान (N.I.A.S.) के द्वारा किया गया था। इसके यशस्वी निदेशक प्रो० विनोद चन्द्र श्रीवास्तव जी ने अत्यन्त गरिमापूर्वक इस संगोष्ठी का आयोजन किया। इसकी प्रमुख विशेषता यह रही कि प्राकृत के मुक्तक-काव्यों पर स्वतन्त्र रूप से पूर्णतया नवीन दृष्टि से इसमें विद्वानों ने चिन्तन प्रस्तुत किये। प्रत्येक आलेख संग्रहणीय एवं मननीय था।
इसमें सम्मिलित विद्वानों में प्रो० कलानाथ शास्त्री, प्रो० हरीराम आचार्य, डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव, प्रो० धर्मचंद्र जैन, प्रो० भागचन्द्र ‘भास्कर', डॉ० सुदीप जैन, डॉ. विजयकुमार जैन, डॉ० (श्रीमती) राका जैन आदि प्रमुख थे। ___ ऐसी उच्चस्तरीय संगोष्ठियों के आयोजन के लिए हरसंभव प्रोत्साहन मिलना चाहिए. ताकि प्राकृतभाषा और साहित्य के लिए अच्छा वातावरण एवं उपयुक्त मंच मिल सके और इसकी गौरव-गरिमा से सभी जन परिचित हो सकें।
-सम्पादक ** नासिक में 'महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद्' की स्थापना "महाराष्ट्र में जैन इतिहास की जड़े काफी गहराई तक फैली हुई है। शोध कार्य यहाँ बड़े पैमाने पर हो सकता है। महाराष्ट्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं भाषासंबंधी जैन इतिहास का शोधकार्य शोधार्थियों के आनंद का भी एक कारण हो सकता है। इस शोध खोज को दिखा मिले तथा शोधार्थियों को एक मंच प्राप्त हो, इस उद्देश्य से यहाँ पर 'महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद' की स्थापना हो रही है". ये विचार इस परिषद के अध्यक्ष डॉ० गजकुमार शहा ने अभिव्यक्त किये।
नासिक के फार्मेसी कॉलेज के प्राचार्य जयकुमार शांतिनाथ शेटे के सहयोग से आयोजित इस बैठक में दीपज्योति का प्रज्ज्वलन पं० धन्यकुमार बेलोकर तथा अन्य विद्वानों के सहयोग
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000