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इस अंक के लेखक-लेखिकायें
1. डॉ० दयाचन्द्र साहित्याचार्य संस्कृत-साहित्य-जगत् में आप एक मूर्धन्य विद्वान् के रूप में जाने जाते हैं, तथा जैनदर्शन, इतिहास एवं संस्कृति के क्षेत्र में भी आपका व्यापक अध्ययन है। इस अंक में प्रकाशित जैनदर्शन में जिन' शब्द की व्याख्या', लेख आपका है। । स्थायी पता–प्राचार्य, श्री गणेश दि० जैन संस्कृत महाविद्यालय, लक्ष्मीपुरा, मोराजी, सागर470002 (म०प्र०)
2. अनूपचन्द न्यायतीर्थ आप वयोवृद्ध जैनविद्वान् एवं कवि हैं। इस अंक में प्रकाशित है पावन पर्दूषण ! आओ' शीर्षक हिन्दी कविता आपके द्वारा लिखित है।
स्थायी पता—769, गोदिकों का रास्ता, किशनपोल बाजार, जयपुर-302003 (राज०)
3.विद्यावाचस्पति डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव आप प्राकृतभाषा एवं साहित्य के अच्छे विद्वान् हैं। लेखन एवं चिंतन की मौलिकता आपके सृजन में प्रतिबिम्बित रहती है। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'आदिपुराण में बिम्ब और सौन्दर्य' आपकी लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता— पी०एन० सिन्हा कॉलोनी, भिखना पहाड़ी, पटना-800006 (बिहार)
4. डॉ० हरिराम आचार्य—आप भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत-प्राकृत के अधिकारी विद्वान् हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के कृतकार्य प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। हिन्दी-संस्कृत एवं प्राकृत के सिद्धहस्त कवि व लेखक हैं। इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृत का लोकप्रिय छंद : गाहा' आपकी लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता-42-ए, पर्णकुटी गंगवाल पार्क, जयपुर-302004 (राज०)
5. डॉ० धर्मचन्द्र जैन आप कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत-प्राकृत विभाग के कृतकार्य प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं। जैनदर्शन, संस्कृत, प्राकृत एवं पालि आदि विषयों पर आपका अच्छा अधिकार है। अनेकों पुस्तकें एवं शोध-आलेख आपने लिखे हैं। इस अंक में प्रकाशित 'प्राकृत सट्टकों में प्रकृति-चित्रण' शीर्षक आलेख आपके द्वारा रचित है।
पत्राचार पता-38-ई, विश्वविद्यालय परिसर, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय-136119 (हरियाणा)
6. श्रीमती इन्दु जैन आप भारतीय दर्शन एवं अध्यात्म की उत्कृष्ट विदुषी हैं। शाश्वत मूल्यों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकना आपके चिंतन की मौलिकता को दर्शाता है। इस अंक में प्रकाशित 'अहिंसा ही विश्वशांति का उपाय' शीर्षक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता–6, सरदार पटेल मार्ग, नई दिल्ली-110001
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '20000