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7. डॉ० राजमल जैन—जैन संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्त्व के क्षेत्र में आप एक जाने माने हस्ताक्षर हैं। आपके द्वारा लिखे गये अनेकों पुस्तकें एवं लेख प्रकाशित हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी निरन्तर अध्ययन एवं लेखन के साथ-साथ. शोधपूर्ण कार्यों में निरत रहते हैं।
इस अंक में प्रकाशित प्राचीन भारत' पुस्तक में कुछ और भ्रामक कथन', शीर्षक का आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता—बी-1/324, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
8. डॉ० (श्रीमती) माया जैन आप जैनदर्शन की अच्छी विदुषी हैं। इस अंक में प्रकाशित भाषा, विभाषा और शौरसेनी' शीर्षक आलेख आपकी लेखनी से प्रसूत है।
स्थायी पता—पिऊकुंज, अरविन्द नगर, ग्लास फैक्ट्री चौराहा, उदयपुर-313001 (राज०)
9. डॉ० सुदीप जैन श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली में 'प्राकृतभाषा विभाग' में उपाचार्य एवं विभागाध्यक्ष हैं। तथा प्राकृतभाषा पाठ्यक्रम के संयोजक भी हैं। अनेकों पुस्तकों के लेखक, सम्पादक । प्रस्तुत पत्रिका के 'मानद सम्पादक' | इस अंक में प्रकाशित सम्पादकीय', के अतिरिक्त दशलक्षण धर्म' एवं 'आषाढी पूर्णिमा : एक महत्त्वपूर्ण तिथि' शीर्षक आलेख आपके द्वारा लिखित हैं।
स्थायी पता—बी-32, छत्तरपुर एक्सटेंशन, नंदा फार्म के पीछे, नई दिल्ली-110030
10. श्रीमती अमिता जैन प्राकृत, अपभ्रंश एवं जैनविद्या की स्वाध्यायी विदुषी। श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ में संचालित प्राकृतभाषा पाठ्यक्रम में अध्यापन कार्य के साथ-साथ कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान में दिगम्बर जैन साहित्य में लेश्या' विषय पर शोध कार्यरत। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'सुयोग्ह बहू', नामक लेख आपकी लेखनी से प्रसूत है।
पत्राचार-पता—बी-704, प्रथम तल, सफदरजंग इन्क्लेव एक्सटेंशन, नई दिल्ली-110029
11.श्रीमती रंजना जैन आप प्राकृतभाषा, जैनदर्शन एवं हिन्दी-साहित्य की विदुषी लेखिका हैं। इस अंक में प्रकाशित आलेख 'सम्राट् खारवेल के शिलालेख की सूत्रात्मक शैली की दृष्टि से समीक्षा' एवं 'पवयणसार के मंगलाचरण का समीक्षात्मक मूल्यांकन', 'प्राकृतभाषा का स्वरूप एवं भेद-प्रभेदों का परिचय' आपके द्वारा लिखित है।
स्थायी पता—बी-32, छत्तरपुर एक्सटेंशन, नंदा फार्म के पीछे, नई दिल्ली-110030
12. धर्मेन्द्र जैन आप जैनदर्शन एवं प्राकृत के शोध-छात्र हैं एवं सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के जैनविद्या-प्राकृत विभाग' में शोधरत हैं। इस अंक में प्रकाशित 'अध्यात्मक साधक (बीसवीं सदी के महान् आचार्य शान्तिसागर जी) की सामाजिक चेतना' शीर्षक आलेख आपके द्वारा रचित हैं।
13. श्रीमती बिन्दु जैन—आप हिंदी एवं प्राकृत की अध्येत्री विदुषी हैं एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ में प्राकृतभाषा विभाग' में उच्च अध्ययनरत हैं। इस अंक में प्रकाशित शिक्षा व संस्कृति के उत्थान की महान् प्रेरिका : चिरोंजाबाई' शीर्षक आलेख आपके द्वारा रचित हैं। स्थायी पता—157, चन्द्र विहार, मंडावली, आई०पी० एक्सटेंशन, दिल्ली-110092
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
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