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निर्दोष टंकण, आदर्श सम्पादन एवं नयनाभिराम मद्रण की त्रिवेणी से समन्वित यह संस्करण और भी उपादेय बन गया है। आशा है इसको व्यापक जनादर प्राप्त होगा। यह कृति केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के प्रत्येक संस्थान में, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, सार्वजनिक पुस्तकालयों एवं इतिहास-संस्कृति के विद्वानों के पास अवश्य भिजवायी जानी चाहिए, ताकि इसमें निहित अत्यंत उपयोगी जानकारी का व्यापक उपयोग हो सके। साथ ही जैन-संस्कृति के प्रत्येक मंदिर में तथा प्रत्येक जैनधर्मानुरागी सज्जन के पास यह कृति अवश्य ही होनी चाहिये। इससे जैन-परम्परा का गौरवमय इतिवृत्त ज्ञात होगा तथा अनेकों भ्रमों का निवारण हो सकेगा।
सम्पादक **
(3) पुस्तक का नाम : तत्त्वार्थसूत्र व भक्तामरस्तोत्र का मराठी अनुवाद अनुवाद : श्री मनोहर मारवडकर प्रकाशक : युगम प्रकाशन. 17-बी, महावीर नगर, नागपुर-440009 (महा०) संस्करण : प्रथम, 1000 प्रतियाँ, पेपरबैक, पृष्ठ 48 मूल्य : दस रुपये
तत्त्वार्थसूत्र' एवं 'भक्तामरस्तोत्र' जैनसमाज में सर्वाधिक पढी जाने वाले धार्मिक ग्रंथ हैं। ये क्रमश: तत्त्वज्ञान एवं भक्तिरस के अनुपम निदर्शन हैं। अभी तक हिन्दी एवं अंग्रेजी आदि भाषाओं में इनके अनेकों संस्करण दृष्टिगत हुए थे. किंतु मराठी भाषा में भावानुवाद वाला संभवत: यह प्रथम संस्करण मुझे दृष्टिगोचर हुआ है। इसमें विद्वान् अनुवादक ने भाषा एवं भावों का सामंजस्य बिठाकर कम शब्दों में ही सरल व सटीक ढंग से अपनी बात को प्रस्तुत किया है। मूल अभिप्राय की सुरक्षा इसकी प्रमुख विशेषता है। ___ इस सादा कलेवर के, किन्तु उपयोगी प्रकाशन के लिये अनुवादक एवं प्रकाशक - दोनों साधुवाद के पात्र हैं।
-सम्पादक **
पुस्तक का नाम : दौलत-विलास मूलकर्ता : कविवर दौलतराम सम्पादन एवं अनु० : डॉ० वीरसागर जैन प्रकाशक
: भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली-110003 मूल्य :: पच्चास रुपये, (डिमाई साईज़, पृष्ठ 152)
कविवर पं० दौलतराम जी की कालजयी लोकप्रिय रचना 'छहढाला' की प्रतियाँ जैनसमाज के घर-घर में तो हैं ही, जैनेतर जिज्ञासु भी इसे चाव से पढ़ते व अपनी स्वाध्यायशाला में स्थान देते हैं। यह इतनी निर्विवाद एवं जनादृत रचना है कि यह सभी का कंठहार बन गयी है।
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
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