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आषाढी पूर्णिमा : एक महत्वपूर्ण तिथि
-डॉ० सुदीप जैन भारतीय संस्कृति में तिथियों की महत्ता के पीछे कई अत्यन्त महनीय कारण रहे हैं। वे कारण प्रकृति, पर्यावरण, भूगोल, खगोल, मौसमविज्ञान, चिकित्साविज्ञान, कृषि एवं उद्योग आदि बहुआयामी दृष्टियों से व्यापक महत्त्व के रहे हैं। यहाँ तक कि मात्र धार्मिक दृष्टि से उपयोगी मानी गयी तिथियों के पीछे भी ऐसे वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक कारण भी अन्तर्निहित रहे हैं। अष्टमी' और 'चतुर्दशी' तिथियों में व्रत-उपवास का सीधा सम्बन्ध खगोल-विज्ञान व शरीर-विज्ञान से युगपत् है। शरीर के जलीयतत्त्व में चन्द्रमा के प्रभाव से न्यूनाधिक्य समुद्र के ज्वार-भाटे की तरह आता रहता है; अत: उसके संतुलन के लिए तथा पाचनतंत्र को विश्राम देने के लिए इन तिथियों में व्रत-उपवास आदि की वैज्ञानिक उपादेयता है। इसीप्रकार चैत्रमास से नववर्ष का प्रचलन उत्तर भारत के मैदानी भागों की मुख्य फसल रबी की फसल' के आने से जुड़ा हुआ है। कृषिप्रधान इस देश मे अर्थतन्त्र की रीढ़ मुख्य फसल ही होती है, अत: उसी से होली एवं चैत्र-नववर्ष की तिथियों को व्यावहारिक महत्ता मिली है। 'अष्टाह्निका पर्व' एवं 'दशलक्षण पर्व' वर्ष में तीन-तीन बार आते हैं। ये ऋतु-परिवर्तन के समय आहारशुद्धि के द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य के संतुलन में अद्भुत वैज्ञानिक महत्त्व के होते हैं; क्योंकि इन दिनों व्रत-उपवास आदि के द्वारा शरीर के संचित विकारों का क्षय करके उसे नये मौसम के अनुकूल बनने में मदद मिलती है। विचार-शुद्धि की दृष्टि से इनका अध्यात्मिक महत्त्व तो सुप्रमाणित है ही। वैदिक परम्परा के तीन बार के नवरात्र भी इसी श्रेणी में आते हैं। इसीप्रकार
देवोत्थानी एकादशी' जैसी तिथियाँ प्रकृति एवं पर्यावरण की अनुकूलता का वह सिंहद्वार हैं. जो कार्यक्रमों के आयोजन के लिए सुखद एवं अनुकूल वातावरण की सुनिश्चिता प्रमाणित करती हैं। बसंतपंचमी' को बिना शोधा मुहूर्त' कहे जाने के पीछे भी यही दृष्टि निहित है।
उक्त सांकेतिक विवरण से यह सत्यापित हो जाता है कि भारतीय परम्परा में तिथियों की महत्ता भले ही धार्मिक और कर्मकाण्ड की दृष्टि से बतायी गयी हो; किंतु वे तिथियाँ बहुआयामी दृष्टियों से उपयोगी होती हैं। इसी क्रम में एक तिथि का उल्लेख
प्राकृतविद्या-जुलाई-सितम्बर '2000
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