Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust
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शर्मा, पटना, 1973, प्रथम संस्करण)। तथा भोजकृत शृंगारप्रकाश, पृ0 524 पर उद्धृत : तथाहि शृगाररसे सातिशयोपयोगिनी प्राकृतभाषेति सट्टक :।
कर्पूरमंजर्याख्य: राजशेखरेण तन्मात्र एव निबद्धः ।। 7. सट्टकं प्राकृताशेषपाठ्यं स्यादप्रवेशकम्। न च विष्कम्भोऽत्र प्रचुरश्चाद्भुतो रसः ।।
अंका जवनिकाख्या: स्यु: स्यादन्यन्नाटिका समम् ।। -(साहित्य दर्पण, 6/206) 8. द्र० आनन्दसुन्दरी, पृ० 58 (सं० -डॉ० ए०एन० उपाध्ये, बनारस, 1955, प्रथम संस्करण) तथा- वस्तुप्रकरणान्नाटकान्नायको नृपः । प्रख्यातो धीरललित: शृंगारोउंगीसलक्षण: ।।
स्त्रीप्रायचतुरंगदिभेदकं यदि चेष्यते। एकद्विव्यंगपात्रादिभेदेनानन्तरूपता।। देवी तत्र भवेज्ज्येष्ठा प्रगल्भा नृपवंशजा। गम्भीरा मानिनी कृच्छ्रात्तद्वशान्नेतृसंगमः ।। नायिका तादृशी मुग्धा दिव्या चातिमनोहरा । अन्त:पुरादिसम्बन्धादासन्ना श्रुतिदर्शनैः ।। अनुरागो नवावस्थो नेतुस्तस्यां यथोत्तरम्। नेता तत्र प्रवर्तेत देवीत्रासेन शंकित।
कैशिक्य»श्चतुर्भिश्च युक्ताकैरिव नाटिका।। -(दशरूपक, 3/43-48) 9. निश्चिन्तो धीरललित: कलासक्त: सुखी मृदुः। -(दशरूपक, 2/3) 10. यौवनान्धा स्मरोन्मत्ता प्रगल्भा दयिताङ्के ।
विलीयमानेवानन्दाद्रतारम्भेऽप्यचेतना।। -(वही, 218) 11. मुग्धा नववय: कामा रते वामा मृदु: क्रुधि। -(वही, 216) 12. सट्टकं प्रचुरश्चाद्भुतो रस:। —साहित्यदर्पण 6/276, आनन्दसुन्दरी 2/3 तथा वही
125 देखिए रौद्र एवं शान्तरस के उदाहरण) 13. आनन्दसुन्दरी, 1/181 14. वही, 2/151 15. कर्पूरमञ्जरी, 4/41 16. आनन्दसुन्दरी, 3/181 17. वही, 1/101 18. वही, 1/241 19. कर्पूरमञ्जरी, 1/321 20. चंदलेहा, 2/31 21. आनन्दसुन्दरी, पृ0 301 22. कर्पूरमञ्जरी 2/7 : केदईकुसुमपत्तसंपुडं पाहुदं तुअ सहीअ पेसिदं।
एणणाहिमसिबण्णसोहिणा तं सिलोअजुअलेण लंछिदं ।। 23. द्र० प्राकृतभाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ0 419। 24. रम्भामञ्जरी, 1/401 25. आनन्दसुन्दरी, 3/16। 26. वही, पृ० 401 27. वही, 3/171 28. वही, 3/191
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000

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