Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ 5-17) संख्यात्मक संदर्भ प्रस्तुत लेखक ने कैलाशचंदजी की पुस्तक (10109) से लिए हैं। यदि यहाँ पशु' का अर्थ animal से लिया जाए, और ऋषभ' से बैल (जैसा कि श्री शर्मा कहते हैं, तो क्रमश: अर्थ होगा बैल पशुओं का राजा है' (शर का क्या होगा?) और बैल पशुओं का प्रजापति है' यह बात गोता खा जाने की बन गई। यदि पशु का अर्थ मनुष्य या देहधारी किया जाए और ऋषभ से ऋषभदेव किया जाए, तो मतलब निकलेगा ऋषभदेव मानवों के राजा थे। यह जैन मान्यता है। दूसरे का आशय भी इसी प्रकार ऋषभदेव देहधारियों के प्रजापति थे, यह होगा। जैन मान्यता है कि जब कल्पवृक्षों से मानवों की आवश्यकतायें पूरी होना कठिन हो गया, तब उस समय के मनुष्य ऋषभदेव के पास जीविका के उपाय पूछने गए तथा उनसे अपना अधिपति या राजा बनने की प्रार्थना की जो ऋषभदेव ने स्वीकार कर ली और उन्हें असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प कार्यों से जीविका करने का उपदेश दिया। लोगों ने उनसे अपना शासक बनने की प्रार्थना की थी, इसलिए वे प्रजापति' कहलाए। यहां यही संकेत जान पड़ता है और अर्थ भी ठीक बैठ जाता है। यदि श्री शर्मा 'भागवत' के पंचम स्कंध के पांचवे अध्याय के 19वें श्लोक के गोरखपुर संस्करण के हिंदी अनुवाद को ही देख लेते, तो उन्हें यह जानकारी मिलती “मेरे इस अवतार शरीर का रहस्य साधारणजनों के लिए बुद्धिगम्य नहीं है। शुद्ध सत्त्व ही मेरा हृदय है और उसी में धर्म की स्थिति है। मैंने अधर्म को अपने से बहुत दूर पीछे की ओर ढकेल दिया है। इसीसे सत्पुरुष मुझे 'ऋषभ' कहते हैं।" ये शब्द भागवतकार ने पुत्रों को उपदेश देते समय ऋषभ से कहलवाये हैं।। वैदिक-कोश में भी उन्हें ऋषभ के अर्थ विज्ञानवान् (परमयोगी), उत्कृष्ट गुणकर्म स्वभावस्य राज्ञ: तथा अनंतबल: (परमात्मा), आदि अर्थ विद्वान् लेखक को मिल जाते। 'हलायुध कोश' में ऋषभ को आदिजिन: अवतारविशेष: कहा गया है। 4. जबपद राज्य - शैशुनाक वंश ईसा से छठी शताब्दी पूर्व में सोलह महाजनपद थे। उनकी जानकारी के संबंध में श्री शर्मा ने यह नहीं बताया कि उनके संबंध में जैन-ग्रथों से सबसे अधिक सूचना प्राप्त हुई है। किंतु बुद्ध-काल में नगरों के संबंध में उनकी सूचना है कि “पालि और संस्कृत-ग्रथों में उल्लिखित अनेक नगरों को खोद (किसने?) निकाला गया है, जैसे कौशाम्बी, श्रावस्ती, अयोध्या, कपिलवस्तु, वाराणसी, वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र और चम्पा।” कपिलवस्तु को छोड़कर अन्य सभी स्थान जैन-ग्रथों में अधिक चर्चित एवं वंदनीय माने गए हैं। बिंबिसार और अजातशत्रु बुद्ध के सामने नतमस्तक हुए थे—यह श्री शर्मा का कथन है। किंतु बिंबिसार महावीर का परम श्रोता था। महावीर की माता त्रिशला वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष चेटक की पुत्री थी। त्रिशला की बहिन चेलना का विवाह बिंबिसार से हुआ था। बिबिसार ने महावीर से जो प्रश्न किए, उनसे जैन-पुराण भरे पड़े हैं। किंतु श्री शर्मा ने यह प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 00 89

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116