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9. दक्षिण भारत ___ श्री शर्मा ने दक्षिण भारत के 'सातवाहन' और सुदूर दक्षिण के तीन राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु (प्राचीन नाम तमिलगम) और केरल में ब्राह्मण राजाओं का ही प्राधान्य. वैदिक यज्ञों का प्रचार आदि पर ही अधिक जोर दिया हैं। मौर्य-शासन की समाप्ति (मौर्य राजा की हत्या उसके ब्राह्मण सेनापति ने की थी) पर उनकी टिप्पणी है. “मौर्य-साम्राज्य के खंडहर पर खड़े हुए कुछ नए राज्यों के शासक ब्राह्मण हुए। मध्यप्रदेश में और उससे पूरब मौर्य साम्राज्य के अवशेषों पर शासन करनेवाले 'शुंग' और 'कण्व' ब्राह्मण थे। इसी प्रकार 'दकन' और 'आंध्र' में चिरस्थायी राज्य स्थापित करनेवाले सातवाहन भी अपने आपको ब्राह्मण मानते थे। इन ब्राह्मण राजाओं ने वैदिक यज्ञ किए, जिनकी अशोक ने उपेक्षा की थी।” __ इतिहास के ज्ञाता जानते हैं कि 'शुंग' और 'कण्व' वंश अल्पजीवी थे। किंतु शर्माजी ने दीर्घजीवी मौर्ययुग के प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त के बारे में इतना भी नहीं लिखा कि वह जैनधर्म का अनुयायी था। इसका प्रमाण श्रीरंगपट्टन का शिलालेख है, जो कि 600 ई० का है और इस पुस्तक की समय-सीमा में आता है।
आंध्र के सातवाहन वंश के एक राजा हाल ने महाराष्ट्री प्राकृत में गाथा सप्तशती' लिखी है, उस पर जैन प्रभाव है। इस शासन में “प्राकृत भाषा का ही प्रचार था" (डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन)। प्राचीन जैन-साहित्य में भी सातवाहन राजाओं के उल्लेख पाए जाते हैं। शायद श्री शर्मा का ध्यान इन तथ्यों की ओर नहीं गया। उन्होंने यह अवश्य लिखा है कि “उत्तर के कट्टर ब्राह्मण लोग आंध्रों को वर्णसंकर मानकर हीन समझते थे।” (पृ०164)
कर्नाटक के कदम्ब' और 'गंग' वंश जैनधर्म के अनुयायी थे। उनके संबंध में श्री शर्मा का मत है..“पश्चिमी गंग राजाओं ने अधिकतर भूमिदान जैनों को दिया। कदम्ब राजाओं ने भी जैनों को दान दिया, पर वे ब्राह्मणों की ओर अधिक झुके हुए थे।" ___ कर्नाटक के इतिहास की सबसे प्रमुख घटना हेमांगद देश' (कोलार गोल्ड फील्ड से पहिचान की जाती है) के राजा जीवंधर द्वारा स्वयं महावीर से जैन-मुनि-दीक्षा लेना है। कर्नाटक स्टेट गजेटियर में उल्लेख है, "Jainism in Karnataka is belived to go back to the days of Bhagawan Mahavir, a prince from Karnatak is described as having been initiated by Mahavir himself."
दूसरी प्रमुख घटना चंद्रगुप्त मौर्य का श्रवणबेलगोल की चंद्रगिरि पहाड़ी पर तपस्या एवं समाधिपूर्वक देहत्याग की है।
श्री शर्मा ने इतिहास-प्रसिद्व इन घटनाओं का उल्लेख नहीं किया है, जब कि इस ब्राह्मण अनुश्रुति का उल्लेख किया है, कहा जाता है कि “मयूरशर्मन् ने (कदम्ब वंश का संस्थापक) अठारह अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों को असंख्य (?) गाँव दान में दिए।" प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् श्री रामचंद्रन का मत है कि बनवासि के कदम्ब शासक यद्यपि हिंदू थे. तथापि उनकी बहुत-सी प्रजा जैन होने के कारण वे भी यथाक्रम जैनधर्म के अनकूल थे।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000