Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ है। वे लिखते हैं “लिच्छवियों के गणराज्यों में एक के ऊपर एक सात न्यायपीठ होते थे, जो एक ही मामले की सुनवाई बारी-बारी से सात बार करते थे। लेकिन यह अत्यधिक उत्तम होने के कारण अविश्वसनीय है।” इसके विपरीतं श्री जायसवाल का मत है, "Liberty of the citizen was most jealously guarded. A citizen could not be held guilty unless he was considered so by the Senapati, the Upraja and the Raja seperately and without dissent." (Hindu Polity, p. 46) यह अतिरिक्त सावधानी उक्त सप्त-व्यवस्था के अतिरिक्त थी । उसका सबसे उच्च निर्णायक गणतंत्र का अध्यक्ष होता था। आजकल भी तो राष्ट्रपति को क्षमादान का अधिकार उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भी है और उस पर अपनी टिप्पणी मंत्री ही भेजता है । 7. चंद्रगुप्त मौर्य दासी - पुत्र नहीं श्री शर्मा ने अध्याय 14 को ‘मौर्य युग' नाम दिया है, किंतु अन्य अध्यायों की भाँति एक भी सहायक पुस्तक का नाम नहीं दिया है । अध्याय 23 में उन्होंने इतिहासकार श्री रामशंकर त्रिपाठी की पुस्तक का नाम दिया है। श्री त्रिपाठी की History of Ancient India भी उन्होंने देखी होगी । उसमें श्री त्रिपाठी ने इस बात का खंडन किया है कि 'मुरा' से 'मौर्य' शब्द बना है । वास्तव में नेपाल की तराई में 'पिप्पली' गणतंत्र के क्षत्रिय 'मोरिय' वंश में चंद्रगुप्त का जन्म हुआ था । इसलिए वे 'मौर्य' कहलाए । ब्राह्मण-परंपरा ने उन्हें निम्न उत्पत्ति का बतलाने के लिए यह कहानी गढ़ ली है - ऐसा जान पड़ता है। इसी प्रकार इस परंपरा में जैन नंद राजाओं को भी 'शूद्र' कहा गया है। कुछ इतिहासकार उसी को सच मानकर असत्य का साथ देते हैं । सम्राट् खारवेल के शिलालेख में स्पष्ट उल्लेख है कि नंद राजा कलिंगजिन की प्रतिमा उठा ले गया था, उसे वह वापस लाया है। स्पष्ट है कि नंद राजा जैन थे। श्री शर्मा ने तो खारवेल के शिलालेख के उल्लेख से ही परहेज किया है ऐसा जान पड़ता है। 8. जैन सम्राट् खारवेल के शिलालेख की अनदेखी । खारवेल का लगभग 2200 वर्ष प्राचीन शिलालेख भारत के पुरातात्त्विक इतिहास में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । वह आज भी विद्यमान है। श्री शर्मा ने उसका उल्लेख ही नहीं किया है। केवल पृ० 209 पर खारवेल का नाम लेकर हाथ धो लिए हैं । किंतु अगले ही पृष्ठ पर वसिष्ठ, नल, मान, माठर जैसे छोटे-छोटे राज्यों का उड़ीसा में होना पहिचान कर बताया है और यह लिखा है, “हर राज्य ने ब्राह्मणों को बुलाया था। अधिकांश राजा वैदिक यज्ञ करते थें । " यह है एक इतिहासकार का दृष्टिकोण । दीर्घजीवी मौर्य-शासन के राजा जैन थे— ऐसा लिखना वे न जाने किस कारण से भूल गए । अशोक को भी भांडारकर आदि विद्वानों ने जैन माना है । मौर्य वंश के सभी राजा जैन थे – ऐसा कथन इतिहास के साथ न्यायपूर्ण होता । प्राकृतविद्या�जुलाई-सितम्बर 2000 0091

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116