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अंततोगत्वा सम्यक विचार के बाद श्री अग्रवाल ने यह मत व्यक्त किया.. "ऋषभनाथ के चरित का उल्लेख 'श्रीमद्भागवत' में भी विस्तार से आता है और यह सोचने पर बाध्य होना पड़ता है कि इसका कारण क्या रहा होगा? 'भागवत' में ही इस बात का भी उल्लेख है कि “महायोगी भरत ऋषभ के शत पत्रों में ज्येष्ठ थे और उन्हीं से यह देश भारतवर्ष कहलाया"- येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठगुण आसीत् । येनेदं वर्ष भारतमिति व्यपदिशन्ति ।।
-(भागवत 5/4/9) (द्र० श्री अग्रवाल लिखित प्राक्कथन, जैन साहित्य का इतिहास - पूर्वपीठिका, लेखक पं० कैलाशचंद)
ऋषभ-पुत्र भरत के नाम पर भारत के लिए वैदिक पुराण यथा- 1. मार्कण्डेय, 2. कूर्म, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. गरुड, 6. ब्रह्मांड, 7. वाराह, 8 लिंग, 9. विष्णु, 10 स्कंद आदि और भी पुराण देखे जा सकते हैं। इनमें से कोई भी पुराण वैदिक भरतवंश से भारतवर्ष नाम की व्युत्पत्ति नहीं बताता है।
'पुराण-विमर्श' नामक अपनी पुस्तक में पुराण-संबंधी समस्याओं का महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करनेवाले प्रसिद्ध विद्वान् स्व० बलदेव उपाध्याय का मत उद्धृत करना उचित होगा। उनका कथन है— ___“भारतवर्ष इस देश का नाम क्यों पड़ा? —इस विषय में पुराणों के कथन प्राय: एक समान हैं। केवल मत्स्यपुराण ने इस नाम की निरुक्ति के विषय में एक नया राग अलापा है कि भरत से ही भारत बना है। परन्तु भरत कौन था ? इस विषय में मत्स्य (पुराण) ने मनुष्यों के आदिम जनक मनु को ही प्रजाओं के भरण और रक्षण के कारण भरत की संज्ञा दी है- भरणात् प्रजानाञ्चैव मनुर्भरत उच्यते।।
निरुक्तवचनैश्चैव वर्षं तद् भरतं स्मृतम् ।। -(मत्स्य, 114/5-6) ___ “प्रतीत होता है कि यह प्राचीन निरुक्ति के ऊपर किसी अवांतर युग की निरुक्ति का आरोप है। प्राचीन निरुक्ति के अनुसार स्वायंभुव के पुत्र थे प्रियव्रत, जिनके पुत्र थे नाभि । नाभि के पुत्र थे ऋषभ, जिनके एकशत पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र भरत ने पिता का राज्य प्राप्त किया और इन्हीं राजा भरत के नाम पर यह प्रदेश 'अजनाभ' से परिवर्तित होकर भारतवर्ष कहलाने लगा। जो लोग दुष्यन्त के नाम पर यह नामकरण मानते हैं, वे परंपरा के विरोधी होने से अप्रमाण हैं।” (पृष्ठ 333-334)। अंत में उन्होंने अपने कथन के समर्थन में वायुपुराण, भागवतपुराण के उद्धरण दिए हैं।
स्व० उपाध्यायजी प्रस्तुत लेखक के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत गुरु थे। सरस, स्पष्ट शैली के धनी उपाध्यायजी 99 वर्ष की आयु में दिवंगत हुए। कुछ ही वर्षों पूर्व वे काशी के एक जैन विद्यालय में पधारे थे। सभा में उन्होंने इतना ही कहा कि “यह देश
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
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