Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 88
________________ के म भरत को यह श्रेय दिया जाता है कि इस कल्पित भरत के नाम पर यह देश भारत कहलाता है। अग्नि के संबंध में श्री अग्रवाल ने लिखा था, “ऋग्वेद में ही अग्नि को भरत कहा गया है, ... अग्नि भरत है; क्योंकि वह प्रजाओं को भरती है। देश में जहाँ-जहाँ अग्नि फैलती है. प्रजायें उसकी अनुगामी होकर उस प्रदेश में भर जाती हैं... इस प्रकार समग्र भूमि भरत अग्नि का व्यापक क्षेत्र बन गई और यही भरतक्षेत्र भारत कहलाया ।” इस व्याख्या को पुराणों ने स्वीकार नहीं किया और ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर भारत स्वीकार किया । दूसरी व्युत्पत्ति मनु भरत के संबंध में उन्होंने लिखा था कि प्राचीन अनुश्रुति के अनुसार “सब प्रजाओं का भरण करने और उन्हें जन्म देने के कारण मनु को भरत कहा गया। नाम की उस निरुक्ति के अनुसार यह वर्ष भारत कहलाया ... ऋग्वेद काल में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा या जन की संज्ञा थी । ” यदि श्री शर्मा का संकेत इस व्युत्पत्ति की ओर है, तो वह भी पुराणों में स्वीकृत नहीं हुई । वैदिक आर्यों ने तो अपने देश को संप्तसिंधु ( सात नदियों का देश ) कहा है । उसकी सीमा में काबुल, सिंध, पंजाब और कश्मीर आते थे । इस छोटे-से प्रदेश के निवासियों ने अपने प्रदेश का भी नाम बदलकर शेष अज्ञात पूरे भारत को भारतवर्ष नाम दे दिया होगा ——— यह विश्वसनीय नहीं जान पड़ता । समर्थन में पं० कैलाशचंद की पुस्तक से एक उद्धरण प्रस्तुत है— “ऋग्वेद में सप्तसिंधव देश की ही महिमा गाई गई है । यह देश सिंधु नदी से लेकर सरस्वती नदी तक था । (सरस्वती नदी का नाम तो ऋग्वेद में केवल एक बार ही आया है।) इन दोनों नदियों के बीच में पूरा पंजाब और कश्मीर आता है तथा कुम्भा नदी, जिसे आज काबुल कहते हैं, की भी वेद में चर्चा है । अत: अफगानिस्तान का वह भाग जिसमें काबुल नदी बहती है. आर्यों के देश में गर्भित था । यह सप्तसिंधव देश ही आर्यों का आदि-देश था [आर्यों का आदि देश, पृ० 33 संपूर्णानंद ], किंतु प्राच्य भाषाविद् डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी का कहना है कि प्राचीन रूढ़िवादी हिंदू मत कि 'आर्य भारत में ही स्वयंभूत हुए थे', विचारणीय ही नहीं है । [ भारतीय आर्यभाषा और हिंदी, पृष्ठ 20]" तीसरी व्युत्पत्ति दुष्यन्त-संबंधी है। दुष्यन्त - पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं कहलाया; क्योंकि उसका तो वंश ही नहीं चला। उसके तीन पुत्रों को उसकी रानियों ने मार डाला था। इसलिए कि वे उसके अनुरूप नहीं थे ( द्र० भागवत पुराण) और ऋषियों ने दुष्यन्त के वंश का अंत होने की स्थिति आ जाने पर उसे एक लड़का लाकर दिया था. जो भरद्वाज कहलाया । कालिदास ने भी अभिज्ञानशाकुंतल में दुष्यन्त के पुत्र के नाम पर भारत नहीं लिखा । लिया । श्री अग्रवाल ने ‘भारत की मौलिक एकता' ( पृ० 21-26-27 ) में अग्नि और अन्य व्युत्पत्ति-संबंधी भूल कर बैठे थे; किंतु बाद में अपनी भूल को उन्होंने सुधार ☐☐ 86 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000

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