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रह सकेगी? उसे मृगांक-चन्द्र सांक के समान प्रतीत होता है, शीतल मलयानिल देह को सन्तप्त करता है। कोकिल की कूक रौद्र मालूम होती है, कामदेव के बाण जीवन को अपहरण करने वाले जान पड़ते हैं। बेचारी विरहिणी को रात्रि में एक क्षण भी नींद नहीं आती"मयंको सप्पंको मलयपवणा देहतवणा, कुहू-सद्दो रुद्दो सुमससरा जीविदहरा। वराइयं राई उवजणइ णिद्दम्मि ण खणं, कहं हा जीविस्से इह विरहिया दूर पहिया।" ___ आनन्दसुन्दरी सट्टक के तृतीय जवनिकान्तर में विवाहोत्सव के उपरान्त राजा शृंगारवन में प्रविष्ट होता है और नानाविध वृक्षों को खिला हुआ देखता है, तब वह उद्दीप्त होकर नायिका को भी विविध प्रकार के पुष्पों के समान आह्लादकारी बतलाते हुए धूर्त व्यक्ति की भाँति सतत आलिंगन की इच्छा प्रकट करता है
"पअसि ! ददंतो सोरब्भं विविध-कुसुमाणं सुहअरं। करंतो वीसद्धं कुरल-सिअआणं तरलणं ।। किरंतो सीदाई सलिलकण-जालाइ सुअहो।
जगप्पाणो धुत्तो विझ सददमालिंगइ तुमं ।।" यहाँ पर नायक और नायिका की संयोगावस्था है और वृक्ष आदि उद्दीपन हैं। 4.माबवीकरण के रूप में प्रकृति का चित्रण
प्रकृति का मानवीकरण रूप वहाँ दृष्टिगोचर होता है, जहाँ कवि मानव-व्यवहार को प्रकृति पर आरोपित करता है। अभिप्राय यह है कि मानव के क्रियाकलाप का जब कवि उसी रूप में वर्णन प्रकृति के लिए भी करता है, तब वह प्रकृति का मानवीकरण के रूप में चित्रण कहलाता है।
आनन्दसुन्दरी सट्टक के तृतीय जवनिकान्तर में मन्दारक का यह कथन - "एसो एला-लदालिगिंदो लवंगदरू" अर्थात् 'यह एलालता से आलिगित लवगंतर है। - मानवीकरण के रूप में प्रकृति के चित्रण की झलक प्रस्तुत करता है; कारण कि आलिंगन इत्यादि क्रियाकलाप तो मानव जगत् में ही दृष्टिगत होते हैं, न कि प्रकृति में; किन्तु यहाँ कवि ने इलायची-लता को लवंगवृक्ष से आलिंगित बतलाया है, जो मानवीकरण के रूप में प्रकृति के चित्रण को दर्शाता है। अन्य सट्टकों में भी ऐसे प्रसंगों को खोजा जा सकता
5.बैतिक उपदेश-प्रकाशनार्थ प्रकृति का चित्रण
उपदेश-प्रकाशन को दृष्टि में रखकर जब कवि प्रकृति का चित्रण करता है, तब वह नैतिक उपदेश-प्रकाशन के रूप में प्रकृति का चित्रण कहलाता है। जैसेकि आनन्दसुन्दरी सट्टक में
नवीन अधिकारी से उत्पन्न हुआ भय पूर्वाधिकारी को अधिक व्याकुल करता है।
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000