Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 38
________________ एवं भौगोलिक स्थिति की सार्थक सूचनायें देते हैं। इसीप्रकार राज्याभिषेक के पाँचवें वर्ष में नंद राजा के द्वारा तीन सौ वर्ष पूर्व खुदवाई गई नहर को तिनसुलिया के रास्ते कलिंग नगरी लाना ऐतिहासिक एवं भौगोलिक दोनों दृष्टियों से गूढ़-रहस्यों को सूचित करना है। राज्याभिषेक के आठवें वर्ष में प्रदत्त विवरण में भी 'पलवभार' एवं 'कपरुख' इन दो पदों के द्वारा उसने एक पूरी संस्कृति के गूढ तत्त्वों को संकेतित कर दिया है। ग्याहरवें वर्ष में 'पिथुड को गधों से जुतवाना' भी ऐसे ही गूढ-रहस्यों का उद्भावन करता है। क्योंकि किसी स्थान को उजड़वाने के लिये ऐसे प्रयोग किये जाते थे। इसी क्रम में जब वह एक सौ तेरह वर्ष प्राचीन तमिल-गणतंत्र की सूचना देता है। तो वह इसकी संबलता तथा दक्षिण भारत में ईसापूर्व तृतीय शताब्दी से गणतांत्रिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण रहस्य उद्घाटित करता है। अंतत: 'चोयठि अंग संतिक तुरियं', 'जीवदेहसिरिका' एवं 'खेमराजा' आदि पदों का प्रयोग गूढ-रहस्यों को सूचित करता है। 5. निर्दोषत्व ___ सूत्रशैली में पुनरुक्ति या पिष्टपेषण को सबसे प्रमुख दोष माना जाता है। हाथीगुम्फा अभिलेख में वर्ष-क्रमानुसार तथ्यात्मक निरूपण होने से इसमें पिष्ट-पेषण की गुंजाइश भी नहीं थी। तथा सम्राट् खारवेल ने भी इसके बारे में बेहद सावधानी रखी है। संपूर्ण शिलालेख में एक मात्र सम्राट् खारवेल का नाम ही एकाधिक बार आया है, और वह भी वाक्य में असंदिग्धता के लिये; न कि पिष्टपेषण के लिये। क्योंकि यदि उन स्थलों पर इसके नाम की जगह सर्वनामों का प्रयोग किया जाता, तो उसमें भ्रम की पर्याप्त गुंजाइश थी। अन्य व्याकरणादि दृष्टियों से भी इस शिलालेख के पाठ अधिक आदर्श एवं निर्दोष है। अत: सूत्रशैली के पाँचवें गुण निर्दोषता' का भी इसमें स्पष्टरूप से अनुपालन प्रतीत होता है। 6. हेतुमत्त्व जब प्रत्येक पद का प्रयोग सोद्देश्य एवं सहेतुक रीति से किया जाता है, तो उसे हतमत् प्रयोग' कहते हैं। खारवेल-अभिलेख में वैसे तो प्रत्येक पद का प्रयोग सोद्देश्य एवं सहेतुक है; जैसे ‘णमो अरिहंताणं' आदि दो लघु वाक्यांश मंगलाचरण के निमित्त दिये गये हैं। 'महाराजाभिसेचनं पद उसके विशिष्ट राज्याभिषेक को सूचित करता है। वातविहत पद गोपुरों एवं प्राकारों आदि के पुन:संस्कार का कारण बताता है। 'कण्हवेणं गताय' पद कलिंग नगरी से 'असिक नगर' की दिशा को समझने के लिये मील के पत्थर की भाँति है। 'दंपनतगीतवादित-संदसनाहिं' एवं 'उसव-समाज कारापनाहिं' में जो अलग-अलग क्रियाओं का प्रयोग किया गया है; वे इस कार्यक्रमों के आयोजनों की प्रकृति की भिन्नता बताने के लिये हैं। चतुर्थ वर्ष में वितध-मुकुट एवं निखित-छत-भिंगारे पदों का प्रयोग उन पराजित राजाओं को मूर्तरूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से किया गया है। 'बम्हण' एवं 'समण' पदों का प्रयोग खारवेल के समय में विद्यमान प्रमुख सम्प्रदायों की 40 36 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000

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