Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ स्पष्ट समास - - गंधववेद-बुधो, हय-गज - णर - रध - बहुलं, जीव- देह - सिरिका, सकल - - सुविहितानं, सब-रठिक- भोजके । समण 3. सारवत्त्व अनावश्यक बातों का कथन न हो, मात्र सारभूत बातें ही आयें – इसके प्रति सम्राट् खारवेल इतना अधिक सावधान था कि उसके अभिलेख में त्रयोदश-वर्षीय राज्य - विवरण के अतिरिक्त अन्य कई महत्त्वपूर्ण सूचनायें भी नहीं आ रही हैं । जैसेकि— खारवेल के माता-पिता का नाम या आगामी पीढ़ी आदि का विवरण । यद्यपि वह सातवें वर्ष में अपने राजकुमार की उत्पत्ति का संकेत करता है, किन्तु कोई विवरण वह नहीं देता है । इतिहासकारों को ये चीजें कमी के रूप में लग सकती है; किन्तु यदि हम भारतीय परम्परा का स्मरण करें, तो उसमें वैयक्तिक परिचय के बारे में ऐसे प्रयोग अनेकत्र प्राप्त होते हैं । कई साहित्यकारों ने बड़े-बड़े ग्रंथ लिख दिये; किन्तु अपने कुल - परिचय के बारे में एक पंक्ति भी नहीं लिखी । तथा हाथीगुम्फा अभिलेख के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है कि इसमें खारवेल का लक्ष्य अपने त्रयोदशवर्षीय राज्य शासन का संक्षिप्त विवरण देना था । राज्याभिषेक के पूर्ववर्ती उसने अपने 24 वर्षीय वैयक्तिक जीवन को भी मात्र कुछ ही शब्दों में कहकर समाप्त किया है। इसीप्रकार उपसंहार - वाक्य में भी उसने प्रत्येक विशेषण के द्वारा अपने व्यक्तिगत एवं जीवन की विशेष उपलब्धियों को संकेतित किया है । और प्रत्येक पद में सारभूत महत्त्वपूर्ण बातों को ही सूचित करता है । इसकी सारवत्ता को इस बात से जाना जा सकता है कि अभी तक लगभग डेढ़ सौ से अधिक विद्वानों ने इसके शिलालेख के प्रत्येक पद का भाष्य किया है; तथापि कई पद अभी भी अनेकों रहस्यों को अपने आप में संजोये हुये हैं । तथा उनके विशद - व्याख्यान में कई पृष्ठों की सामग्री आ सकती है । उदाहरणस्वरूप- 'गंधववेदबुधो' एवं 'विजाधिराधिवास - अहतपुवं' ये दो पद ऐसी ही व्यापक विवेचन की अपेक्षा रखते हैं । 4. गूढ़ निर्णयत्व हाथीगुम्फा अभिलेख यद्यपि एक सम्राट् का ऐतिहासिक विवरण है, फिर भी इसके सीमित शब्द भी अनेकों गंभीर बातें संकेतमात्र में प्रस्तुत कर जाते हैं। जैसेकि— राज्याभिषेक के द्वितीय वर्ष में 'अचितयिता सातकणिं' यह पद बताता है कि खारवेल के राज्याभिषेक के समय सातकर्णी राजा एक पराक्रमी एवं सुसमृद्ध राज्य का धनी रहा होगा; किंतु खारवेल को अपने पौरुष, रणकौशल एवं दूरदर्शिता पर पूर्ण विश्वास था। अत: उसने सातकर्णी की परवाह किये बिना पश्चिम दिशा की ओर अपनी चतुरंगिणी सेना को भेजा । किंतु इससे यह भी स्पष्टरूप से संकेतित है कि वह सातकर्णी से उलझा नहीं था । अर्थात् उसने सातकर्णी से युद्ध नहीं किया था । इसीप्रकार ‘कृष्णवेणा' को पार करने के बाद 'असिक नगर' का उल्लेख उसके मार्ग प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000 OO 35

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116