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है। यहाँ 'वा' को हटा सकते हैं; पर उच्चारण में पूर्ण गति नहीं रहेगी और अर्थ में भी परिवर्तन हो जायेगा। इसलिये सूत्रकारों ने जो सूत्र दिये, वे भी अनुशासन से युक्त हैं। गाथायें तो पद, वाक्य, ध्वनि और अर्थ — इन चारों अंगों को ही समाहित किये रहती हैं। सूत्र भी इसी तरह के हैं। भाषा और लिपि __ प्रत्येक भाषा की निश्चित लिपि होती है। जो उसके स्वरूप का ज्ञान कराती है। और वही उसके महत्त्व को भी प्रतिपादित करती है। वर्गों के लिखने की विधि का नाम लिपि है। लिपि का सामान्य अर्थ लिखावट है। अर्थात् लिखने की विधि से पूर्व मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त सार्थक ध्वनि-संकेतों के माध्यम से बोलना प्रारंभ किया जाता है। जिसे वाणी या भाषा कहा जाता है। जब वे ही प्रयोग या ध्वनि-संकेत वर्गों के रूप धारण कर लेते हैं, तो वर्ण की जो लिखावट या बनावट सामने आती है; वही लिपि कहलाती है। बहलिपिवाले इस भारत क्षेत्र में एक लिपि निश्चित नहीं हुई; क्योंकि यह राष्ट्र बहुविध है। वर्गों में विभक्त है, अत: भारत के प्रमुख प्राचीन लिपियों में कुछ प्रचलित लिपियाँ हैं और कुछ अप्रचलित लिपियाँ हैं। परन्तु दोनों के आकलन से देवनागरी लिपि' की प्रमुखता प्रगट होती है।
लिखित रूप में भिन्न-भिन्न ध्वनियों के अनुसार वर्णों का वर्गीकरण किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक भाषा के वर्गों के रूप भिन्न-भिन्न दिखाई देते हैं। और उसी के कारण लिपि में भी भिन्नता आ जाती है। परन्तु यह तो निश्चित है कि भाषा, भावों की सफल अभिव्यक्ति का माध्यम है, तो लिपि उसके लिखितरूप का प्रकाशन है।
-(हिन्दी भाषा एवं रचना, पृ० 5) भारत की प्रमुख लिपियाँ
ब्राह्मी, खरोष्ठी, गुप्त तथा कुटिल आदि । प्रचलित लिपियाँ
देवनागरी, बांग्ला, तमिल, गुरुमुखी आदि। अतिरिक्त लिपियाँ
. उड़िया, तमिल, मलयालम, गुजराती, उर्दू आदि । देवनागरी लिपि
प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, नेपाली आदि भाषायें। देवनागरी लिपि में लिपिबद्ध मिलने से प्राचीन भारतीय भाषाओं का भाषा रूप-विज्ञान, प्रक्रिया आदि सभी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। शौरसेनी प्राकृत का भी देवनागरी लिपि से संबंध है। इसके अतिरिक्त अर्धमागधी, पालि, मागधी आदि प्राकृतों के स्वरूप एवं बनावट के
प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
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