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साथ में उनकी माता और धर्मपत्नी ने तथा हजारों आदिवासियों ने मद्य-मांस का त्याग किया।
रूढ़ियों का अन्त :- धर्म के नाम पर बलि में जो हिंसा होती थी, वह कई जगह आपके सदुपदेशों से बन्द हुई। यद्यपि ऐसा कई जगह हुआ; किन्तु विस्तारभय से दो घटनाओं का मात्र उल्लेख है
1.वि०सं० 1985 में (म०प्र०) कटनी के पास ढूंढा' गाँव में 20 स्त्रियों ने एक साथ आचार्यश्री की प्रेरणा से देवी पर बलि-हिंसा का त्याग किया।
2. राजस्थान उदयपुर जिले के धरियावद रावजी ने वि०सं० 1991 में दशहरे पर धर्म के नाम पर होने वाली बलि-हिंसा का सदा के लिये त्याग किया।
जैतिक पतन के कारण समझाना एवं उनसे बचने के सुझाव :- वे कहते थे कि “भारत के लोगों का नैतिक स्तर गिरने का कारण सन्मार्ग छोड़ कुमार्ग पर चलना है। कुमार्ग का तात्पर्य आज के लोगों ने हिंसा-झूठ, चोरी, कुशील और अतिलोम को अपना जीवन बना लिया है। सन्मार्ग को अपनाने से यह स्थिति पुन: सुधर सकती है। स्वयं सरकार को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, यथा राजा तथा प्रजा। यदि सरकार कानूनन पञ्च पापों का त्याग अनिवार्य कर दे और स्वयं शासकगण सन्मार्ग ग्रहण करें, तो साधारण जनता भी कुमार्ग छोड़ सन्मार्ग में प्रवृत्त हो जायेगी। यदि सरकार ऐसा करे, तो मेरा (आचार्य शांतिसागर जी) दृढविश्वास है कि देश के सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। बरसात का न होना, अन्न की कमी, प्राकृतिक उत्पात आदि कोई भी संकट नहीं रहेगा तथा प्रजा का कल्याण होगा।" इसी प्रसंग में उन्होंने कहा- “गाँधी जी ने मात्र अहिंसा का आंशिक पालन किया व करवाया, जिसके फलस्वरूप स्वराज्य मिला। यदि पाँचों पापों का सम्पूर्ण त्याग किया जाये, तो क्या मानव के सभी कष्ट दूर होकर सम्पूर्ण सुख नहीं मिल सकता? इससे अवश्य ही सर्वत्र सुख और शान्ति का साम्राज्य हो सकता है।” । .. स्त्री-शिक्षा :- उन्होंने इस विषय में कहा कि “महिलाओं को विद्याग्रहण करने व जीविकोपार्जन करने का अधिकार है। स्वयं के निर्वाह के लिये स्त्री डॉक्टरी, अध्यापकी जैसे कार्य कर सकती है।" इसमें आचार्यश्री की दूरदर्शिता लक्षित होती है; क्योंकि महिलाओं में सहज वात्सल्य एवं विनम्रता होती है, अत: नारी विद्यार्थी को वात्सल्य-प्रेम के साथ शिक्षा ग्रहण करा सकती है। तथा रोगी की भी स्नेह के साथ चिकित्सा कर सकती है; इसी कारण आचार्य श्री ने स्त्रियों के लिये इन दो प्रकार की जीविका पर बल दिया।
युद्ध का खतरा - कुविद्या का दुष्फल :- आधुनिक विज्ञान की प्रगति के फलस्वरूप ऐसे शस्त्रास्त्र बन गये हैं, जिनके प्रयोग से सारी मानव-जाति को एक साथ नष्ट करने की कल्पना की जा रही है। इस विषय में आचार्यश्री ने कहा- “यह सब कुविद्या है, चोर-बुद्धि है। एक बम से अचानक हजारों लोगों के प्राण लेना कोई वीरता
.. प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000
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