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ओर संकेत करती है, जिसमें कामकथा का अवसान बहुधा धर्मकथा में किया जाता है और धर्मकथा का प्रचार-प्रसार ही इसप्रकार की काव्यकथा का मूल उद्देश्य होता है।
आदिपुराण की कथाओं में समाहित कला-तत्त्व की वरेण्यता के कारण ही इस काव्य का साहित्यिक सौन्दर्य अपना विशिष्ट मूल्य रखता है। सौन्दर्य-विवेचन में, विशेषत: नख-शिख के सौन्दर्योद्भावन में महाकवि जिनसेन ने उदात्तता (सब्लाइमेशन) की भरपूर विनियुक्ति की है। __विजयार्ध पर्वत के तट को आक्रान्त कर प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के सौन्दर्यांकन (पर्व 26) में उदात्तता का उत्कर्ष दर्शनीय है, जिसमें उपमा-बिम्ब की रमणीयता बरबस मन को मोह लेती है। वह गंगा नदी रूपवती स्त्री के समान थी; क्योंकि मछलियाँ ही उसकी चंचल आँखें थीं। उठती हुई तरंगें उसकी नर्तनशील भौहों के समान थीं। नदी के उभय तटवर्ती वनपंक्ति ही उसकी साड़ी थी। मुखरित हंसमाला उसकी बजते घुघरुओं वाली करधनी के समान थी। लहरें ही उसके लहराते वस्त्र थे। अपना वाग्वैदग्ध्य प्रदर्शित करते हुए महाकवि ने गंगा को ‘समांसमीना' विशेषण से मण्डित किया है। गंगा समांसमीना' गाय के समान थी। 'समांसमीना' का अर्थ है – वह उत्तम गाय, जो प्रतिवर्ष बछड़े को जनम देती है ('समां समां वर्ष वर्ष विजायते प्रसूते' इति-निपातसिद्ध शब्द)। इसीप्रकार गंगा भी 'समांसमीना' है, अर्थात् मांसल या परिपुष्ट मछलियों वाली है। पुन: उत्तम गाय में जैसे पर्याप्त पय अर्थात् दूध होता है, वैसे ही गंगा में पर्याप्त पय अर्थात जल है और फिर उत्तम गाय जैसे धीरे स्वर में रँभाती है ('धीरस्वना' होती है), वैसे ही गंगा भी गम्भीर कल-कल शब्द करती है। इसप्रकार इस सन्दर्भ में वाक्सौन्दर्य, अर्थ-सौन्दर्य और भाव-सौन्दर्य के साथ ही पावनतामूलक एवं समग्र श्लेषपरक बिम्ब-सौन्दर्य का एकत्र समवाय हुआ है। ___ गंगा के शृंगारपरक सौन्दर्य को शान्त रस की ओर मोड़ते हुए महाकवि ने लिखा है कि- उत्तम गाय की तरह गंगा भी पूजनीय और जगत् को पवित्र करनेवाली है, साथ ही वह जिनवाणी के समान जान पड़ती है :
"गुरुप्रवाह-प्रसृतां तीर्थकामैरुपासिताम् ।
गम्भीरशब्दसम्भूतिं जैनी श्रुतिमिवामलाम् ।।" – (श्लोक 137) जिनवाणी जिसप्रकार गुरु-प्रवाह अर्थात् आचार्य परम्परा से प्रसारित होती है; तीर्थ, अर्थात् धर्म के आकांक्षी पुरुषों द्वारा उपासित होती है, गम्भीर शब्दोंवाली और दोषरहित है; उसीप्रकार गंगा भी विशाल जलप्रवाह वाली है, तीर्थकर्मियों द्वारा उपासित होती है, गम्भीर घोष करनेवाली तथा निर्मल और निष्पंक है। यहाँ गंगा का गाय और जिनवाणी से सादृश्य की प्रस्तुति से पवित्रताबोधक चाक्षुष बिम्ब-सौन्दर्य का विधान हुआ है।
महाकवि आचार्य जिनसेन नारी-सौन्दर्य के समानान्तर ही पुरुष-सौन्दर्य का भी
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प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000