Book Title: Prakrit Vidya 2000 07
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 30
________________ “सामण्णेणं बारस अट्ठारस बार पण्णरसमत्ताओ। कमसो पय-चउक्के गाहाए हुंति णियमेणं ।।" संस्कृत के मात्रिक छंद 'आर्या' का भी यही लक्षण है “यस्या: पादे प्रथमे द्वादशमात्रा स्तथा तृतीयेऽपि । अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश सार्या ।।" 'गाथा' और 'आर्या' की इस समानता को देखकर कोलबुक (A.R. x 400) का कथन है “प्राकृत गाथा संस्कृत आर्या का लोकरूप है; किन्तु यह कथन प्रामाणिक नहीं, मात्र आनुमानिक है।” वस्तुत: गाथा अपने मूलरूप में विषम द्विपदी खण्ड' था, जिसकी प्रथम अर्द्धाली में 30 और दूसरी अर्द्धाली में 27 मात्रायें होती थीं। यह गेय था और भावगीतों का आधार था। इस छंद का मात्रिक विधान और द्विपदीत्व इसके लोकगीतात्मक उत्स का संकेत करते हैं। पिंगलाचार्य ने इसे 'अनुक्त' कहकर छोड़ दिया और वृत्त-रत्नाकर' (1/18) में 'शषं गाथा' लिखकर गाथा को विषमाक्षर' एवं विषम चरणवाला 'विषमवृत्त' बताया गया। जब लोकछंद 'गाथा' को संस्कृत पंडितों ने 'आर्या' नाम दिया, जो द्विपदी खंड गाथा को 12 : 18 : 12: 15 मात्राओं में विभाजित करके इसे चतुष्पदी बनाकर अपना लिया। इसप्रकार प्राकृत 'गाथा' संस्कृत में 'आर्या' पद पर प्रतिष्ठित हुई; किन्तु 'सामवेद' के सहस्रवत्र्मों की तरह गाथा के अन्य अनेक भेदोपभेद संस्कृत में अवतरित नहीं हो सके, जबकि प्राकृत में वे काव्योद्यान में प्रस्फुटित होते रहे, जिनका विवरण णंदियड्ढ (नन्दिताढ्य) द्वारा लिखित प्राचीन ग्रंथ 'गाथा-लक्षण' में विस्तार से मिलता है। सदाशिव आत्माराम जोगळेकर ने हालसातवाहनाची गाथा सप्तशती' की भूमिका (पृ०46) में मराठी वृत्तदर्पण' से उद्धत लक्षण-सहित विषमवृत्त आर्या (गाथा) के चार अन्य गीतिभेदों का उल्लेख किया है गीति - 12 + 18 : 12+ 18 उपगीति - 12+ 15 : 12 + 15 उद्गीति - 12+15 : 12 + 18 आर्यागीति – 12 + 20 : 12 + 20 किन्तु इनके उदाहरण संस्कृत में नही मिलते, जबकि वस्तुत: ये गाथा छंद के प्रकार हैं, इसलिये प्राकृत में इनके उदाहरण प्रचुर परिमाण में उपलब्ध है। 'प्राकृत-पैंगलम्' (भाग-2) में विषम द्विपदी गाहा' जिसके प्रथमार्द्ध में 30 और द्वितीयार्ध में 27 मात्रायें कुल 57 मात्रायें होती हैं, जिसका चतुष्पदी रूप संस्कृत में 'आर्या' कहलाया, के मुख्यत: 27 भेद गिनाये हैं, जो गुरु-लघु वर्गों की घट-बढ़ के आधार पर बनते हैं। जिस गाथा में 27 गुरु तथा तीन लघु वर्ण (कुल 30 वर्ण एवं 57 मात्रायें) हों, वह गाथाओं में आद्या लक्ष्मी गाथा' (लच्छीगाहा) कहलाती है। तीस अक्षरों से युक्त इस लक्ष्मी को सभी पूजते हैं। इसी में क्रमश: एक-एक गुरु का हास करने से ऋद्धि, बुद्धि. 00 28 प्राकृतविद्या जुलाई-सितम्बर '2000

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