Book Title: Prabandh Chatushtay
Author(s): Ramniklal M Shah
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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सिद्धसेन-दिवाकर-कथानक पंडिय-सहाए जामो जहट्ठियं जेण ते परूवेंति । केण जियं इयरं वा इय भणिए सूरिणा सो य ॥९॥ पडिवज्जइ नो एवं कटेणं सूरिणा तओ गामे ।। आभीर-सहा-मझे नीओ भणिया य ते एवं
॥१०॥ भो भो पंडिय माणी [2B] काही एसो मए समं वायं । ता तुब्भेहिं सक्खी दायव्वा केण विजियं ति ॥११॥ इय भणिउं सो भणिओ जहट्ठियं भणसु भो तुमं वायं । सव्वन्नु-निराकरणं आलत्तं तेण तो एवं
॥१२॥ पच्चक्खाइ-अगम्मो सव्वन्नू नत्थि कोइ इह भुवणे । सस-सिंगं पिव जम्हा सव्वन्नू नत्थि ठियमेयं ॥१३॥ एमाइ वित्थरेणं उल्लविए ते उ सूरिणा भणिया । गामीणा तो बुज्झह एएणं जमिह भणियं ति नो किंपि तेहिं भणिए जंपइ मुणि-पुंगवो इमो भणइ । तुम्हाण देवहरए अरहंतो विज्जइ न एत्थ
॥१५॥ अहयं भणामि विज्जइ ता भो जंपेह को इमं सच्चं । सच्चो [तं] ए[3A]सो पुण मिच्छावाइ त्ति तेहुत्तं । १६ ॥ इय दाविऊण सक्खी तेहिं तो वुड्डवाइणा विप्पो । भणिओ तुह संवित्ती कीरइ भो संपयं सुणसु ॥१७॥ पच्चक्खाई-गम्मो सव्वन्नू विज्जए इहं भुवणे । देव-वयणं च तम्हा सव्वन्नू विज्जइ ठियं ति ॥१८॥ एमाइ-वयण-वित्थर-हय-तम्मय-जाय-गरुय-हरिसेणं' । भणियं तं चिय एत्थं सव्वन्नू जस्स इय वयणं ॥१९॥ १. इहं । २. हरिसेणो ।
॥१४॥
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