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का द्वारपाल हूँ। यह मेरा साथी है, इसका राम गोंक है। हम दोनों-राज-परिवार के अत्यन्त निकटवर्ती सेवक हैं। इसीलिए हमें आपके सम्मुख भेजा गया है। कुछ औरों को भी नियन्त्रण-सा बने हैं। पारिलिमबाण न रहुत हैं जो भेजने को हैं। ऐसे पत्र हम जैसे और नौकर पहुंचा आएंगे। मगर युवराज का खुद का सन्देश उन अन्य निमन्त्रितों के लिए नहीं होता। जिन्हें इस शुभ अवसर पर रहना अत्यन्त आवश्यक है, उन्हीं के पास हम जैसों के द्वारा निमन्त्रण के साथ सन्देश कहला भेजते हैं। राजवंशियों का विश्वासपात्र बनना उतना आसान नहीं है, माताजी! विश्वास योग्य बनना कितना बड़ा सौभाग्य है-इसे मैं खुद अनुभव से समझ पाया हूँ।"
"बहुत अच्छा हुआ। अब आप लोग विश्राम कीजिए। बहुत थके होंगे। गालब्बे ! लेंका से जाकर कहो कि इनके घोड़ों को घुड़साल में बांधकर उनकी देखरेख करे।
"बाहर के बरामदे के दक्षिण की ओर के कमरे में इन्हें ठहराने की व्यवस्था करो। ये राजपरिवार में रहनेवाले हैं, इनकी मेजवानी में कोई कसर न हो।"
_हेग्गड़ती के आदेश के अनुसार व्यवस्था करने के लिए सब लोग वहाँ से चले। आदेशानुसार व्यवस्था कर राजदूतों को कमरे में छोड़कर गालब्बे लौटी । हेग्गड़ती माचिकब्बे ने पूछा, "शान्तला कहाँ है?"
"मैंने देखा नहीं, माताजी! कहीं अन्दर ही होंगी। बुला लाऊँ?" "न, यों ही पूछ रही थी।"
गालब्बे चली गयी। होगड़ती झूले से उठी और अपने कमरे में चली गयी। उसका वह कमरा अन्दर के बरामदे के उत्तर की ओर था। शान्तला भी वहीं माँ के साथ रहती थी। शान्तला ने माँ के आने की ओर ध्यान नहीं दिया। शाम का समय था। वह भोजन-पूर्व भगवान का ध्यान करती, हाथ जोड़े, आँख मूंदे बैठी थी। मन-ही-मन गुनगुनाती हुई प्रार्थना कर रही थी। माचिकब्जे सजगह से प्राप्त पत्र को सुरक्षित स्थान पर रख ही रही थी कि इतने मैं दरवाजे से लेंका ने आवाज दी और कहा कि हेगारेजी आ गये। लेंका की बात सुन उस पत्र को हाथ में लेकर वैसे ही हेग्गड़ती बाहर आयी। लेंका की बात शान्तला ने भी सुनी तो वह भी तुरन्त ध्यान से उठी, माँ के पीछे-पीछे चल पड़ी।
माचिकब्बे अभी बरामदे के द्वार तक पहुँची ही थी कि इतने में होगड़े मारसिंगय्या अन्दर आ चुके थे।
हेगड़ती माचिकब्ने ने कहा, "उचित समय पर पधारे आप।" "सो क्या?" "सोसेऊरु से राजदूत आये हैं।" "क्या समाचार है?" हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कुछ घबराये हुए-से पूछा।
22 :: पट्टमहादेवी शान्तला