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शिष्टाचार का पालन यहाँ भी करना होगा, इसकी उन्होंने अपेक्षा नहीं की थी। एक साधारण हेग्गड़े की बालिका इस तरह का व्यवहार करेगी – इसकी उन्हें उम्मीद भी न थी। उस छोटी-सी बालिका का चलन-बलन, भाव-भंगी, संयमपूर्ण शिष्टाचारव्यवहार और गाम्भीर्ययुक्त वाणी आदि देखकर वे बहुत प्रभावित हुए।
इतने में परिचारिका गालब्बे ने घाली में नाटो सरीता, गुड़, एक बड़े लोटे में पानी और दो गिलास लाकर उनके सामने रखे और कहा, "इसे स्वीकार कीजिए। " फिर स्वयं कुछ दूर हटकर खड़ी हो गयी ।
भों में एक ने गुड़ की भेली तोड़कर मुँह में एक टुकड़ा डालते हुए पूछा, " हेगड़ेजी कहाँ गये हैं?"
परिचारिका गालब्बे ने उत्तर में कहा, "मालिक जब कहीं जाते हैं तो हम नौकर-चाकरों से बताकर जाएँगे ?" उसके इस उत्तर में सरलता थी। कोई अवहेलना का स्वर नहीं था। राजभट आगे कुछ बोल न सके। उन्होंने गुड़ खाकर पानी पिया; पान बनाना शुरू किया। बीच-बीच में यह प्रतीक्षा करते हुए नौकरानी की और देखते रहे कि वह कुछ बोलेगी। तीन-चार बार यों उसकी तरफ देखने पर भी वह चुपचाप ज्यों-की-त्यों खड़ी रही।
इतने में परिचारिका गालब्बे को इन दोनों राजभटों को अन्दर बुला लाने की सूचना मिली। उसने दोनों राजभटों से कहा, "हेग्गड़तीजी ने आपको अन्दर बुला लाने का आदेश भेजा है।"
निर्दिष्ट जगह पर पान की पीक थूक दोनों अन्दर चलने को तैयार हुए। परिचारिका दोनों को अन्दर ले गयी। मुख्य द्वार के भीतर प्रवेश करते हो बड़ी बारहदरी थी, उसे पार कर अन्दर ही दूसरी बारहदरी में उन्होंने प्रवेश किया। वहाँ एक सुन्दर चित्रमय झूला था जिस पर हेम्गड़ती बैठी थीं। राजभटों ने अदब से झुककर प्रणाम किया। गड़ती ने उन्हें कुछ दूर पर बिछी सुन्दर दरी की ओर संकेत करके "बैठिए "
कहा।
राजभटों ने संकोच से झुककर विनीत भाव से पूछा, "हेग्गड़ेजी... " इन राजदूतों की बात पूरी होने से पहले ही हेग्गड़ती ने कहा, "वे किसी राजकार्य से बाहर गये हैं। कब लौटेंगे यह कहना कठिन है। यदि आप लोग उनके आने तक प्रतीक्षा कर सकते हैं तो ठहरने आदि की व्यवस्था कर दूंगी। आप लोग राजदूत हैं। आप कार्यव्यस्त होंगे। हमें यह विदित नहीं, कार्य कितना गम्भीर और महत्त्व का है।"
राजभटों ने तत्काल जवाब नहीं दिया। वे हेगड़े के घर के व्यवहार में यों अस्साधारण ढंग देखकर जवाब देने में कुछ आगा-पीछा कर रहे थे।
इन राजदूतों के इस संकोच को देख हेग्गड़ती ने कहा, "संकोच करने की जरूरत नहीं। सोसेऊरु से आप लोग आये हैं, इससे स्पष्ट है कि आप लोग हमारे अपने
20 : पट्टमहादेश्री शान्तला