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नियुक्तिपंचक विद्वानों ने एक कलाना यह की है कि इनमें छेद प्रायश्चित्त से संबंधित वर्णन है अत: इनका नाम छेदसूत्र पड़ गया पर वर्तमान में उनलब्ध छेदसूत्रों की विषय-वस्तु देखते हुए यह बात काल्पनिक और निराधार प्रतीत होती है। निशीथभाष्य में छेदसूत्रों को उत्तमभुत कहा गया है। निशीथ चूर्णिकार इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि इन्में ब्रायश्चित्त-विधि ला वर्णन है, इनसे चारित्र की विशोधि हेती है, इसलिए छेदसूत्र उत्तगश्रुत हैं। इसके अतिरिक्त ये पूर्वो से निर्मूढ हुए इसलिए भी आमम-साहित्य में छेदसूत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान । छेदसत्रों में मख्यतः उत्सर्ग अपवाद. दोष और प्रयश्चित्त_इन चार विषयों का वर्णन है। दाश्रुतर कंध उत्सर्गप्रधान छेदसूत्र है, इसमें मुख्यत: मुनि के सामान्य आचार का वर्णन हुआ है।
स्वसूत्राको संख्या के बारे में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। जीतकल्प चूणि में केदसूत्रों के रूप में इन ग्रंथों का उल्लेख मिलता है—१ कल्प २. व्यवहार ३. कल्पिकाकल्पिक ४. क्षुल्लकल्प ५. महाकल्प, ६ निशीथ आदि। चूर्णिकार ने दशश्रुतस्कंध का उल्लेख नही किया अत: आदि शब्द से यहां संभवत: दपाश्रुतस्कंध ग्रंथ का संकेत होना चाहिए। कल्पिकाकल्पिक, महाभल्ल एवं क्षुल्लकल्प आदि ग्रंथ आज अनुपलब्ध हैं। फिर भी चूर्णि के इस उल्लेख से यह नि:संदेह कहा जा सकता है कि ये प्रायश्चित्तसूत्र थे और इनकी गणना छेदसूत्रों में होती थी। सानावारी शतक आगमाधिकार में छेदसूत्रों के रूप में छह ग्रंथों के नामों का उल्लेख मिलता है—दशाश्रुतत्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीध, जीतकल्प और महानिशीथ ।। पंडित कैलार चन्द्र शास्त्री ने जैन धर्म पुस्तक में जीतकल्प के स्थान पर पंचकल्प (अनुपलब्ध) को छेदसूत्रों के अंतर्गत भाना है। पाश्चात्य विद्वान् विंटरनित्स ने विस्तार से छेदसूत्रों की संख्या एवं उनके प्रणयन के क्रम की च की है। हीरालाल कापड़िया के अनुसार पंचकल्प का लोप होने के बाद जीतकल्प केदसूत्रों में गिना जाने लगा।
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग २ में छेदसूत्रों के अंतर्गत इन सूत्रों की परिंगणना की गयी है—१. दशाश्रुतस्कंध, २. बृहत्कल्प ३. व्यवहार ४. निशीथ ५. महानिशीथ ६. पंचकल्प अथवा जीतकल्प । तेर पंथ की परम्परा में छेदसूत्रों के अंतर्गत चार ग्रंथों को अंतर्निविष्ट किया है—१ दशाश्रुतस्कंध २ बृहत्कल्प ३. व्यवहार ४. निशीथ । दिगम्बर साहित्य में कल्प, व्यवहार और निशीथइन तीन ग्रंथों का ही उल्लेख है। वहाँ दशाश्रुतस्कंध का उल्लेख नहीं है।
चूर्णिकार ने छेदसूत्रों में दशाश्रुतस्कंध को प्रमुख रूप से स्वीकार किया है। इसको प्रमुख स्थान देने का संभवतः यही कारण रहा होगा कि इसमें मुनि के लिए आचरणीय और अनाचरणीय तथ्यों का कृमबद्ध वर्णन है। शेष तीन सूत्र इसी के उपजीवी हैं। छेदसूत्रों के नामकरण के बारे में विस्तृत वर्णन देखें,व्यवहारभाष्य, भूमिका पृ. ३४।
पंचकल्प भाष्य के अनुसार कुछ आचार्य दशाश्रुत, बृहत्कल्प और व्यवहार—इन तीनों को एक श्रुतस्कंध मानते थे तथा कुछ आचार्य दशाश्रुत को प्रथम तथा कल्प और व्यवहार को दूसरे श्रुतस्कंध के
१. निभा १८४ भाग ४ चू. प.२५३; केरसुयमुराम्सु। २ जीचू ए.१. कम-ववहार-कैप्पियाकपिण्य-चुल्क म
महाकप्परान-निसीहाइएस् छेदसुतेशु अइनित्थरेण पच्छित्त भगिय। ३ सामाचारी शतक, आगमाधिकार।
४ जैनधई २५९।।
History of Indian Literature,Vo2 page 446। ६ A History of the Canonical---Page 371 ७. जैन सा....... भाग २ पृ. १७३ । ८ दचू . २; इमं पुण छेदसुत्तपमुहभूतं ।