Book Title: Nandanvan Kalpataru 2002 00 SrNo 08
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 14
________________ वन्दे. स्तवन-त्रयम् ___ -वाचनाचार्यश्रीमद्विजयमाणिक्यसिंहसूरिः (त्रयमप्येतत् 'वन्दे मातर' मिति रागेण गीयते ।) श्रीजिनस्तवनम् वन्दे श्रीजिनम् अकलं सकलं कलितमहाबलं नित्यनिर्मलं श्रीजिनम् ॥ विश्वस्वामिनं निरुपमनामिनं, अपुनर्भवमन्दिरवासिनं; विभासिनं स्वगुणविलासिनं सुखदं शिवदं श्रीजिनम् ॥ वन्दे. २. श्रीगौतमस्वामिस्तवनम् वन्दे गौतमम् शमिनं दमिनं संयमिनामिनं शुद्धयोगिनं गौतमम् ॥ लब्धिमन्दिरं सुविदितसगिरं श्रीवीरजिनान्तेवासिनं महस्विनं परमतपस्विनं गुणिनं गणिनं गौतमम् ॥ वन्दे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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