Book Title: Nandanvan Kalpataru 2002 00 SrNo 08
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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शारदास्तवनम्
-अभिराजराजेन्द्रमिश्रः अविदिततमसि किरसि भगवति ! शतशतरविकिरणनिचयमनुदितमिह जगति विशदयसि निगमजनितशुचिसरणिमखिलभुवि सततसमुपकृतमनुजसुमतिमयि विधिसुगृहिणि ! ननु विभवसि विधिहरिहरशतमखजगदभिमतनरपतिसुचरितमयि ! विलससि रघुपतियदुपतिकृतिमयि ! विलससि नलनृगरघुकुरुगुणमयि ! विलससि ऋतुचयमधुविवरणमयि ! विलससि रविशशिदिनरजनिनिचयमधुललितवलनमपि! सुकवनमयि ! विलससि वरवरटकविचरणमयि ! करविलसितसितमणिफलगुणमयि ! दृगुभयवितरितनिरवधिरतिरपि कविजननि ! जयसि बुधमहितजगति ॥१॥
अइउऋलसहितकखगघचछजझतथदधपफबभत्रमङणनकलिततनुरसि बुधमयि ! यरलवशषसहमधुरितवपुरसि दधदभिरुचिविधिरपि सृजति भुवनमथ भवदनुमत उमतिनृहरुरिरपि पुनरथ तिरयति भवदनुमतगजरिपुरखिलभुवनचयमिति तव विशदचरितमिह कलयति जननि ॥२॥
अयि जननि ! निशितमतियुतकविरसि नवरसमधुरिममयसुकवनमसि ऋतुपतिनवकुसुमसितहसितमसि घनसमयजलदततिसुतपृषदसि सुमरसमदजनिमधुकररुतिरसि घनरसितकलितशिखिगणनृतिरसि घनतमसि जननि ! हिमकररुचिरसि लसदुषसि जननि ! दिनकररुचिरसि कलकुवलयकुमुदविकसनमुदसि भुवि यदपि रुचिरमिह तदखिलमसि हिमततिसिततनुरपि जननि ! जयसि ॥३।।
निनदति तव जननि ! निनदभृति निनदति सुकविहृदयमनुहतगुणरसपदनिचयमचिरमुपजनितबहलसुखमपलपितसकलविषमविषयचरमयि कविजननि ! भवति भवदनुमत इह खलु सुकतिरतिनृपतिरपि ननु गुणिगणगणनपरमसमुदयमय उभयजगति महसि तपसि यशसि महिततम उदयलसिततम उपामित रविशशियुगल ऋतप ऋतमुमति ॥४॥
११
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