Book Title: Nandanvan Kalpataru 2002 00 SrNo 08
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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रूपकम् - १ साक्षादसौ विभाति, जगद्गुरुहीरविजयसूरिवरः । भूपप्रतिबोद्धाऽभय-दाता तपगच्छनेता च
रूपकम् - २ अभिषेकं दिग्विजयं रिपुभङ्ग सङ्गरं विनैवाऽसौ । जिनशासनसाम्राज्ये "सम्राड"भवद् गुरुर्नेमिः
रूपकम् - ३ विबुधानामिव मनुजा-नामपि पूज्यः शतक्रतु¥त्नः । नन्दतु नेमिगुरुरयं, लोकं श्रुतचक्षुषाऽऽकलयन्
रूपकम् - ४ युगप्रधाना यदि नो, दृष्टा विषमारके ननु ततः किम् ? । जङ्गमयुगप्रधानो, नेमिगुरुयंत इहैवाऽऽस्ते
रूपकम् - ५ नेमिनूतनसूर्यो-ऽस्त्यस्ताचलरोहणेन रहितोऽयम् । उष्णरुचेरतिरिच्यत एषोऽकर्कशकरो नु नेम्यर्कः
परिणामः अभयं नेमिव्याघ्रो, दत्ते षट्कायमृगचयाय तथा । रक्षति तं हिंस्रगणा-दहो ! महच्चरितमतिचित्रम्
उल्लेखः सङ्घर्युगप्रधानः, शिष्यैः कल्पद्रुमश्च भूपालैः। यो गुरुरमन्यत निजः, स नेमिसूरिर्ददातु शिवम्
उल्लेखः - २ तापापगमे सोमो विबुधानां सदसि यो गुरुर्वाग्मी। चक्री सूरिसमाजे, स राजतां नेमिगुरुराजः
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