Book Title: Kuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Prakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
कुवलयमालाकहा में अलंकार योजना काफी समृद्ध है। संस्कृत एवं प्राकृत के अन्य काव्यग्रन्थों के समकक्ष इसे रखा जा सकता है। ग्रन्थ में उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा अलंकार का पद-पद पर प्रयोग किया गया है। कुछ अलंकारों के उदाहरण इस प्रकार हैंउपमा
आलिगियं पि मुंचइ लच्छी पुरिसं ति साहस-विहूणं । गोत्तक्खलण-विलक्खा पिय व्व दइया ण संदेहो ॥ ६६.१९ तुंगत्तणेण मेरु व्व संठियं हिमगिरि व्व धवलं तं ।
पुहई विव विस्थिण्णं धवलहरं तस्स गरवइणो ॥१३८.१६ व्यतिरेक
हूँ, बुज्झइ, वट्टइ खलु खलो ज्जि जइसउ, उझिय-सिणेह पसु-भत्तो य। तहेव खलो वि वरानो पोलिज्जतो विमुक्क-णेहु प्रयाणतो य पहि
खज्जइ ।। ६.६, ७ परिसंख्या
जत्थ य जणवए ण दीसइ खलो विहलो व । दीसइ सज्जणो समिद्धो व, वसणं णाणा-विण्णाणे व, उच्छाहो धणे रणे व, पीई दाणे माणे व, अब्भासो
धम्मे धम्मे व त्ति । ८.१७, १८ श्लेष
अण्णा णंदण-भूमिनो इव ससुराओ संणिहिय-महुमासानो त्ति । ८.५ तथा पंडवसेण्ण-जइसिया, अज्जुणालंकिया सुभीम व्व । रण-भूमि-जइसिया, सर
सय-णिरंतरा खग्ग-णिचिय व्व । २७.२६, ३० चित्रालंकार
दाण-दया दक्खिण्णा सोम्मा पयईए सव्व-सत्ताणं । हंसि व्व सुद्ध-पक्खा तेण तुमं दंसणिज्जासि ॥ १७६.३२
इस गाथा में 'दासो हं ते' अभिप्राय को पद के प्रत्येक अक्षर द्वारा व्यक्त किया गया है।
इन अलंकारों के अतिरिक्त उद्योतनसरि ने कुव० में एक विशेष शैली का प्रयोग किया है, जिसको प्रभाव-संकुलता शैली कह सकते हैं। इसमें वर्णन करते समय वे प्रत्येक पाद के अन्तिम से आगे का पाद प्रारम्भ करते हैं। गद्य एवं पद्य दोनों में इसका प्रयोग उन्होंने किया है । यथा-- , वयण-मियंकोहामिय-कमलं कमल-सरिच्छ-सुपिंजर-थणयं ।
थणय-भरेण सुणामिय-मज्झ मज्झ-सुराय-सुपिहुल-णियंबं ।