Book Title: Karpur Mahek
Author(s): Kapurchand Varaiya
Publisher: Rander Road Jain Sangh

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Page 14
________________ कालधर्मं समापन्ना, चन्द्रिका शान्तसौहृदा समेषामाघातकरं, मोहमय्यां पुरि हि या ।।२८।। उषा हि परिणायिता ऽनन्तरायकुमारकम् द्वौ पुत्रौ हि तयोर्जातौ, पिंकेश-केतुलाभिधौ ।।२९।। कीर्तिस्तु परिणायिता, श्रीतुषारकुमारकम् । भावाभिधपुरे रम्ये, जातो लग्नमहोत्सवः ।।३०।। पादलिप्तपुरे रम्ये, गिरिराजसमन्विते व्यतीतकालो मनसि, स्मरणपथमागतः चतुस्त्रिंशत्तमे वर्षे द्विसहस्राधिके वरे आषाढकृष्मषष्ठयां हि, लिखिता स्वकथा मया वि.सं. २०३४, आषाढ वद-६ 1 ।।३१।। । ।। ३२ ।। कर्पूरेण हि संक्लृप्ता, द्वात्रिंशच्छ्लोकसम्मिता । भवभावविभाविका, निर्वेददायिका सदा 11 कर्पूरचन्द्र आर. वारैया

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