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(४७५से ४८६) दूत ने घापस लौटकर राजा से सारी मात कहीं। राजा चन्द्रशेखर ने किसी भी परिस्थिति में सेठ को देना स्वीकार नहीं किया । जब यह बात सेठ को मालूम हुई तो वह जिनदत्त को याद करने लगा और उसने अपने फूटे भाग्य को धिक्कारा । सेठ अपने ही कारण सारे नगर पर इतना संकट लेने को तैय्यार नहीं हुआ और शत्रु सेना में स्वयं जाने को तैय्यार हो गया किन्तु उसकी आँख फड़कने लगी एवं चित्त पुलकित हो उठा जो उसको पुत्र मिलन को मानो सूचना दे रहे थे । सेठ सेठानी कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ, पंच परमेष्ठी का स्मरण करते हुये राजा से मिलने चल दिये ।
(४८७से५१२) डरते २ सेट राजा के पास पट्चा । जिनदत्त अपने माता पिता को देखकर प्रसन्न हो रहा था । उसने उनके मौन रहने का कारण पूछा, तो सेठ ने अपने विदेश गये हुये पुत्र के बारे में सारी बात कही । सेठानी ने कहा उसके समान उनके भी एक पुत्र था । यह सुनकर जिनदत्त उसके पैरों में गिर गया और उसकी चारों पत्नियाँ भी उसके चरणों में लिपट गयीं । माता के स्तनों से दूध की धारा बह निकली । गजा चन्दशेखर ने जिनदत्त की बड़े मादर के साथ अगवानी की और दोनों वसन्तपुर में राज्य करने लगे । कुछ वर्षों बाद जब चन्द्रशेखर का स्वर्गवास होगया तो जिनदत्त अकेला ही राज्य करने लगा।
(५१३से५४८) एक बार असंतपुर में निन्थ मुनि का प्रागमन हुधा जिनबता अपनी स्त्रियों के साथ उनके दर्शनार्थ गया और उनका धर्मोपदेश सुना । इसके पश्चात् उसने अपने पूर्व मवों के बारे में जानना चाहा तो उसका भी समाधान कर दिया । संसार की प्रसारता को जानकर उसने चारों पत्नियों सहित जिन दीक्षा ले ली और तपश्चरण कर अष्टम स्वर्ग प्राप्त किया । उसकी चारों स्त्रियाँ मी मर कर स्वर्ग गीं।
(५४६ से५५३) अन्त में कवि ने जिनदत्त चरित की प्रशंसा करते हमे लिखा है कि "जो कोई भी इस काव्य की सुनेगा, सुनावेगा, लिलेगा तथा लिखवावेना उसे धन धान्य, सम्पदा एवं पुण्य लाम होगा"।
चौवह