Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतवर्षकी भाषा है तो सब प्रान्तोंके समान शब्दोंको हिन्दीमें जोरोंके साथ प्रचारमें लाना चाहिये । बंगाली, गुजराती, मराठी, सिन्धी, और पंजाबीमें उर्दू शब्दोंकी भरमार है और उन्हें लोग काममें लाते हैं । वे शब्द हिन्दीमें भी प्रचलित हैं । उदाहरणार्थ, अदालत और अदालत संबंधी प्रायः सभी शब्द एकस अधिक भाषाओंमें उर्दूके है और प्रायः मिलते जुलते हैं । ऐसी अवस्थामें उर्दू शब्दोंका प्रयोग न कर रोज बोलनेकी भाषा छोड़ एक नयी भाषा तैयार करना सर्वथा अनुचित है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रचलित संस्कृत शब्दोंके स्थानमें फारसीको घुसने देना बहुत ही बुरा है और यहां करनेका वह प्रश्न भी नहीं है । और जब हम इस बातका विचार करते हैं कि नाटक किन लोगोंके लिये लिखा जाता है, उन लोगोंके समझने योग्य और उनपर प्रभाव डालनेवाली कौनसी भाषा है तब तो हमको उर्दू शब्दोंका परहेज़ बिलकुल ही अनुचित मालम होता है । इसके अतिरिक्त उर्दू भाषा कोई स्वतंत्र भान ही नहीं है । उर्दू हिन्दीका ही एक नाम है। हिन्दीमें फारसी शब्द आ जानेसे लोग उसे उर्दू कहते हैं इतना ही हिन्दी और उर्दू अन्तर है । तात्पर्य, भाषा प्रेक्षकोंके बहुत जल्द समझमें आनेके लिये प्रचलित हिन्दी उर्दू शब्दोंका प्रयोग किया है। पुस्तकके अन्तर्गत युरोपियन रीति-ररम, उपमाएं, विशेष प्रसंग और ऐतिहासिक उल्लेख (Allusions) आदिका प्राय: भारतवर्षकी तत्सम प्रथाओं और संस्थाओं द्वारा अनुवाद किया है। परन्तु एक दृश्य जो युरोपियन देशोंमें ही देख सकते हैं और हिन्दू-भारतवर्षमें नहीं उसका अनुवाद यहांकी किसी संस्था द्वारा नहीं किया-ज्योंका त्यों रख छोड़ना ही उचित जान पड़ा । वह दृश्य कब्रस्तानका है जहां तार्किक कब्र खोद For Private And Personal Use Only

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