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पग पर मुझे गुरुजनो और स्नेहियो का सहयोग प्राप्त होता रहा है। तदनन्तर मै अपने परम पूज्य फादर डा० कामिलबुल्के के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा के शब्द-पुष्प अर्पित करती है, जिनकी स्नेहयुक्त प्रेरणा और सहयोग मुझे वरदान सिद्व हुई। अपने निर्देशक डा० मोहन ,वस्थी के प्रति मै हृदय से आभारी हूँ, जिन्होने निरन्तर मेरी सहायता की।
मै विभागाध्यक्ष, श्रद्वेय डा० लदमीसागर वाष्र्णेय के प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूं, जिन्होने मेरे विषय का चुनाव करके मुझे अपना अमोध सहयोग प्रदान किया।
हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा केन्द्रीय पुस्तकालय से मुझे पुस्तको की पर्याप्त महायता तथा अन्य सुविधाए अध्ययन सम्बन्धी प्राप्त होती रही है, मै उन अधिकारियो के प्रति आभारी हूँ।
मै अपने परमपूज्य पिता जी के प्रति किन शब्दो मे अपनी श्रद्धा व्यक्त करू , जिनकी महत प्रेरणा ही मेरे शोध-कार्य के प्रादि से इति तक छायी रही
और यह प्रस्तुत शोधप्रबन्ध एकमात्र उन्ही के आशीर्वाद के फलस्वरूप प्रकाशित हो पा रहा है।
अन्त मे मै श्री रामहित त्रिपाठी, हिन्दी टवाक के प्रति आभारी हू जिन्होने मेरे शाध प्रबन्ध को बडे ही आत्मीय भाव से शीघ्रातिशीघ्र टकित किया है।
(कुसुम कवकड)