Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-क्रया--तापम का बदला
__-~महारानीजी । आप प्राण-त्याग का निर्णय न करे । हम लोग मत्र वल से राजा को पुनर्जीवित कर देगे ।
रानी धारिणी विस्मय से मत्रियो का मुख देखने लगी। उसे सहसा विश्वास ही नही हुआ । बोली- .
-क्या कहते है, आप लोग ? महाराज जीवित हो जायेगे। --हाँ महारानीजी | आप अवश्य महाराज से मिलेगी। कुछ दिन वैर्य रखे।
-कितने दिन धैर्य रखना पड़ेगा? -केवल सात दिन। महारानी अव भी आश्वस्त नहीं हुई थी। वह समझी कि मत्री लोग उसे दिलासा ही दे रहे है । उसने निर्णयात्मक स्वर मे कहा__ --आप लोग मुझे भुलावे मे डाल रहे है । खैर, मैं सात दिन तक प्रतीक्षा कर लूँगी। यदि आप अपने वचन को सत्य सिद्ध न कर सके
-उसकी नौबत ही नही आयेगी। आप विश्वास रखे महारानी जी ! आपका मिलन महाराज से सात दिन के अन्दर-अन्दर अवश्य होगा।
रानी मौन हो गई और मत्रीगण चले गये।
मातवे दिन रानी ने विस्मयपूर्वक देखा कि महाराज उग्रसेन सही-सलामत, अक्षत-गरीर उसके सम्मुख आ खड़े हुए।
पति को कुशल देखकर रानी की प्रसन्नता का पार न रहा । वह अपने को बहुत भाग्यशाली समझने लगी।
अनुक्रम से गर्भ वढने लगा और पौष कृष्णा १४ मूल नक्षत्र में रात्रि के समय रानी ने पुत्र प्रसव किया । पुत्र का मुख देखते ही एक क्षण के लिए तो रानी को प्रसन्नता हुई किन्तु दूसरे ही क्षण उसे विचार आया-'जिस पुत्र के गर्भ मे आने पर मुझे ऐसा क्रू र दोहद उत्पन्न हुआ. वह वडा होकर न जाने क्या उत्पात करेगा। पिता को जीवित भी छोडेगा या नहीं।' यह विचार आते ही माता को पुत्र से