Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला : भाग ३३
- यह द्वारका नगरी कहाँ है ?
- समुद्र के किनारे, अति समृद्ध | स्वर्ग की अलकापुरी के समान । -कौन है, वहाँ का शासक ?
- यादव कुलभूषण वसुदेव - पुत्र श्रीकृष्ण ।
कृष्ण का नाम सुनते ही जीवयगा वहाँ से उठकर सीधी पिता के पास गई और रोने लगी । पुत्री से रोने का कारण पूछा तो उसने
वताया
- मेरे पति का हत्यारा कृष्ण अभी तक जीवित है और द्वारका नगरी पर राज्य कर रहा है । मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं अग्नि मे जलकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकूँ ।
कृष्ण के जीवित रहने का समाचार जानकर जरासंध भी कुपित हो गया । धैर्य बँधाते हुए पुत्री से बोला
- वत्से । रो मत । मैं कृष्ण को मारकर यादवो का समूलोच्छेद कर दूंगा । यादव स्त्रियाँ अपने ही आँसुओ से भीग जायेगी ।
पुत्री को आश्वासन देकर जरासध युद्ध की तैयारियो मे जुट गया । उसकी सहायता के लिए चेदि नरेश शिशुपाल दुर्योधन आदि समस्त कौरव, महापराक्रमी राजा हिरण्यनाभ आदि आगए। प्रतिवासुदेव जरासघ ने चतुरगिणी सेना सजाकर प्रस्थान कर दिया । प्रस्थान के समय अनेक अपशकुन हुए किन्तु उसने कोई चिन्ता नही की और द्वारका की ओर बढता रहा ।
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जरासंध के आगमन का समाचार कौतुकी नारद तथा अन्य चरों ने कृष्ण को पहले ही दे दिया । युद्ध को अवश्यम्भावी जानकर यादव भी तैयारियाँ करने लगे । समस्त यादव - परिवार और सेना के साथ पाँचो पाडव भी उनसे आ मिले । श्रीकृष्ण द्वारका से प्रस्थित हुए और पैतालीस योजन दूर सेनपल्ली में शिविर लगा दिया ।
उस समय कुछ विद्याधर आये और समुद्रविजय से प्रार्थना को